मौसम ने ली अंगड़ाई है
काली घटा छाई है
वर्षा ऋतु आई है।
काले काले बादलों का मेला आया
नन्ही-नन्ही बुंदिया पड़ने लगी
कोयल कूंह-कूंह गाए
पपीहा पीहू पीहू बोले
मोर-मोरनी नाच दिखाएं
प्रकृति में बहार आई है
काली घटा छाई है
वर्षा ऋतु आई है।
चलो री सखी झूला झूले
मौज मस्ती करने चलें
करके सोलह श्रृंगार
कभी चूड़ी खनकाऊं
कभी पायल झनकाऊं
कभी खुद को रिझाऊं
कभी खुद इतराऊँ
हरी-हरी चुनरी पर
बहार आई है
काली घटा छाई है
वर्षा ऋतु आई है।
पहला झूला दादी मां के
आंगन में झूला
अमवा की डाली पर झूला
मम्मी पापा की बाहों में झूला
लंबी-लंबी पींगे थी
आसमान छूने की
ना जाने क्यों आज
बचपन की याद आई है
काली घटा छाई है
वर्षा ऋतु आई है।
✍️ रजनी वर्मा ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
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