रविवार, जुलाई 09, 2023

⛲ भीगी सड़क, भीगी पलकें ⛲









वो बरसात की,

इक काली रात थी,

भीगी सड़क,

सुनसान थी,

दामिनी,

चमक-चमक कर,

रास्ता दिखा रही थी,

बिजली की कड़क,

मन में दहशत,

भर रही थी,

भीगा बदन,

कंपकंपा रहा था,

कदम मंजिल,

की ओर बढ़ रहे थे,

तभी सन्नाटे को चीरती,

एक आवाज आई।


भीगी हुई वह कली,

दहशत से भरी,

दौड़ने लगी,

भीगी सड़क पर,

लड़खड़ाते हुए गिरी,

आंखों से आंसूओं,

का सैलाब फूटा,

मन कृष्णा को,

पुकार उठा,

हे कान्हा मुझे बचाओ,

मेरे वज़ूद को,

बिखरने न दो,

इस अंधेरी रात का,

कलंक मेरे माथे पर न लगे,

मेरी अस्मत,

तार-तार न हो जाए।


तभी एक साया,

वहां आया,

जिसे देखकर,

मन घबराया,

दो हाथ बढ़े,

मन चित्कार उठा,

तभी स्नेह में डूबा,

एक स्वर सुनाई दिया,

बहन घबराओ नहीं,

हाथ थाम लो,

उठ जाओ,

अपने इस अंजान,

भाई के साथ,

भीगी सड़क पर,

चलते हुए अपने घर,

अपनों के बीच पहुंच जाओ।


मैं हर उस लड़की का,

भाई हूँ जो सुनसान,

सड़कों पर निकलती है,

अपने परिवार की खातिर,

उसके वज़ूद का रक्षक बन,

मैं साए की तरह साथ,

चलता हूँ,

हर बहन बेटियों की,

दुआएं बटोरता हूँ,

क्योंकि कभी,

इसी सुनसान भीगी सड़क पर,

कोई रूसवा हुआ,

दरिंदों की दरिंदगी से,

फिर कभी नही लौटा,

वह हम साया,

अपनी चौखट पर।।


✍️ डॉ. कंचन शुक्ला ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )

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