मुझे आसमां मुख्तसर लग रहा है,
बहुत खूबसूरत सफर लग रहा है।
चुरा के सितारों से सौगात या रब,
दुपट्टे में इक-इक गुहर लग रहा है।
ये तय है के उसकी दुआ साथ है अब,
इबादत का कुछ-कुछ असर लग रहा है।
बड़ी मुश्किलों से मिला है वो मुझको,
कहीं खो ना जाए ये डर लग रहा है।
ये पायल की छन-छन वो चूड़ी की खन-खन,
इन्हीं से तो घर आज घर लग रहा है।
मेरी बूढ़े बरगद से यादें जुड़ी है,
तुम्हें तो फकत ये सज़र लग रहा है।
हवाओं की दस्तक से चौकी है ख़ुशबू,
यक़ीनन कोई मुंतज़र लग रहा है।।
✍️ ख़ुशबू ए फ़ातिमा ( भोपाल, मध्य प्रदेश )
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