हर चेहरे पर लगा है एक मुखौटा।
हर अवसर के लिए एक अलग मुखौटा।
कईयों के पास तो मुखौटों का पूरा वॉर्डरोब है।
कभी-कभी स्विचऑवर भी करना पड़ता है।
क्लब से निकले, शोक सभा में जाना है।
एक लगाकर और एक साथ में कैरी करना पड़ता है।
इसे हल्के में मत लीजिए साहब।
यह सबके वश की बात नही।
यह तो एक अलौकिक कला है ।
वह क्या कहते हैं ? गॉड गिफ्टेड।
मौकापरस्त और सुविधावादी होने में,
क्या बुराई है ? सभी तो ऐसे ही हैं।
ज़माने के साथ चलिए। चिल करिए।
इन चक्करों में ना पड़िए।
यह नैतिकता-अनैतिकता के पाठ न पढ़ाएँ।
यह सब बस किताबी बातें हैं।
ज़रा प्रैक्टिकल बनिए।
दिल से नही दिमाग से काम लीजिए।
कहते हैं आत्मा अमर है,
मरणोपरांत बस चोला बदल लेती है।
पर यहाँ की दिव्य आत्माओं की
तो रोज़ हत्या होती है।
मूल्य ?
जीवन मूल्यों ने तो बहुत पहले ही
स्यूसाइड कर ली है।
आत्मा ! परमात्मा !
आप किस दुनिया में रह रहे हैं ज़नाब ?
जिससे आत्मा को तृप्ति मिले वही कीजिए।
बाकी सभी को विराम दीजिए।
हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़माने में रह रहे हैं।
बहुत आगे बढ़ गए हैं। रोबोट बना रहे हैं।
कहते हैं ये उतनी ही कुशलता से काम करते हैं
जितना कि हम और आप।
अरे वाह आपने तो खूब तरक्की की।
अपने जैसा पुतला खड़ा कर दिया।
विधाता को भी मात दे दिया।
अरे बनाना था तो अपने से कुछ उम्दा बनाते।
दिमाग के साथ उसमें थोड़ी संवेदना भी डाल देते।
✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )
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