पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा रचनाकारों को अनोखी शैली में रचना सृजन हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ऑनलाइन सृजन अनुपम साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके चयनित विषयों पर आधारित रचनाएं लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकार ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश ) और कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल ) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया।
रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
गुरुवार, मार्च 30, 2023
मंगलवार, मार्च 28, 2023
🦚 रोटी 🦚
टूटी खाट पर
घंटों से बैठी
वह विचारमग्न है
आँखों में भरे अश्रु
और हृदय में
व्यथा…
सोचती है
आज कौन सी कहानी
सुना कर सुलायेगी
जब उसके हृदय का टुकड़ा
दौड़ कर आकर उससे लिपट
माँगेगा
रोटी…
सूनी आँखों से
फिर से खंगालती है
अपनी फूस की झोंपड़ी का
कोना-कोना…
हर कोने में
नज़र आती है उसे
असहायता…दुःख…दरिद्रता
किंतु नज़र नही आती उसे
कोई उम्मीद
कोई आस
जो दे पाए उसे
कहीं से दो रोटी…।
जब आँखें मूँदती है
तो दिखती हैं उसे
खेत में झूमती गेहूं की बालियाँ
और उससे बनती गोल-गोल
सुंदर गरम रोटी
जिसका निवाला तोड़
वो डालने जाती है
अपने बच्चे के मुँह में
तभी…
‘माँ, भूख लगी है
रोटी दे दो’
की आवाज़ से भंग होता है
उसका स्वप्न!
देखती है
अकस्मात् आकर
अपने गले में झूलते-मचलते
अपने भूखे बच्चे को…
मन ही मन रोती
बच्चे को सीने से लगा
कहती है
‘आओ पहले तुम्हें चाँद की सैर करा दूँ
फिर हम दोनों खाएँगे
चाँद सी सुंदर
गोल-गोल रोटी’!
उसे गोद में लेटा
वह रुदन से चित्कारते हृदय
किंतु
मुस्कुराते होठों से
सुनाती है उसे कहानी
उस आसमानी चाँद की
जहाँ चारों ओर टंगी हैं
रोटियाँ ही रोटियाँ
और बहती हैं
नदियाँ दूध की…।
कहानी सुनता और धीरे-धीरे
नींद की आग़ोश में जाता बच्चा
मुस्कुराता हुआ
स्वप्न में देखता है
असमान पर टंगी
चाँद सी
सुंदर
गरमा-गरम
गोल-गोल रोटी…!
✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
🦚 मोह और प्यार 🦚
मोह को प्यार समझे नादान।
मोह लघुकालिक तीव्र लगाव
मोह में अंध होता मन-भाव।
प्यार दीर्घकालिक पूर्ण समर्पण,
प्यार में करते हम सर्वस्व अर्पण।
मोह स्वार्थ, प्यार निस्वार्थ
पाने की तृषा, न खोने का त्रास।
मोह आसक्ति, प्यार है शक्ति
प्यार शांति, प्यार है भक्ति।
प्यार सहमति, प्यार स्वीकृति
अंगीकृत करे सब अपकृति।
प्यार है आत्मा का बंधन
करे उजास बाह्य-अंतर।
काम, क्रोध, लोभ, मद,
सभी हैं मोह के अनुचर।
काम-लालसा में लिप्त जन
क्रोधित अशांत रहते हर पल।
मोह मृग मरीचिका है भटकन
सत्-असत् का न करे मंथन।
मोह-जन्य मद में रहते जो कैद
उचित-अनुचित का न करें विभेद।
मोह के वशीभूत हैं जो मन
मोहभंग पर करे क्रंदन।
प्यार में आत्मा है स्वच्छंद
रहती सदा निज आनंद।
✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )
सोमवार, मार्च 27, 2023
🦚 अकेलापन 🦚
क्यों आज बहुत बेचैन है मन
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों चुभता है ये अकेलापन
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों यूँ उलझा है मन का चैन
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों मेरा हृदय व्यथित है आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों अश्रु नही थमते हैं आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों प्रश्नों का हल नही मिलता आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों चित्त का कुसुम ना खिलता आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों लगती ये क्षणदा उदास
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों गाती धरणी विरह के गीत आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों हैं तारे अम्बर के बोझिल आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों है शशि पयोद में ओझल आज
समझा देना गर चाहो तुम
क्यों हैं ओस की बूँदें तन्हा आज
समझा देना गर चाहो तुम
है क्यों बेकल सा हर लम्हा आज
समझा देना गर चाहो तुम
✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
🦚 माँ तुम अनुपमेय हो 🦚
क्या शब्दों में इतनी क्षमता है
जो इस शब्द का विश्लेषण कर सके ?
क्या फूलों में इतनी कोमलता है
जो इसकी कोमल भावनाओं की अनुभूति करा सके ?
क्या नभ इतना विस्तृत है
जिसमें इसकी ममता समा सके ?
क्या पर्वत इतना विशाल है
जितना इसका हृदय विशाल है ?
क्या सरिता में इतनी सरसता है
जो इसकी सरसता की गति पा सके ?
नही !
यह तमाम चीजें
अपनी समस्त क्षमता के साथ
एकबद्ध होकर भी
तुम्हारी उपमा नही बन सकते।
माँ तुम अनुपमेय हो।
✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )
मंगलवार, मार्च 21, 2023
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन शब्द अलंकरण साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा रचनाकारों को साहित्यिक मंच उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन शब्द अलंकरण साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके चयनित विषयों पर आधारित रचनाएं लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकार ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में कविता कोठारी (कोलकाता, पश्चिम बंगाल) और सीमा 'नयन' (देवरिया, उत्तर प्रदेश) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य अलंकार' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया।
शनिवार, मार्च 18, 2023
🌻 मौन 🌻
मौन मूक नही, मौन रिक्त नही
शब्दहीनता तक न है यह सीमित।
बाह्य मौन और आंतरिक मौन
हैं इसके बहु व्यापक आयाम।
मौन है अंतर्मन का तप
इसे ना समझो तुम अशक्त।
रहस्य अंतर स्थल के करता उद्घाटित
करता आत्मा को सशक्त।
भावों का होता जब अतिरेक
हम हो जाते जब निर्विवेक।
अंतर्मन के कोलाहल का
मौन ही तब करता शमन।
मौन समर्थन, मौन प्रतिवाद
मौन की सत्ता है निर्विवाद।
शब्द पड़ जाते जब अक्षम
मौन अभिव्यक्ति होती सक्षम।
✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )
🌻 औरतें 🌻
औरतें तो गुलाब होती हैं
चांदनी माहताब होती हैं।
घर बनाती भुला सभी मसले
उलझनें बेहिसाब होती हैं।
देखने में भले लगे नाजुक
कम नही वो जनाब होती हैं।
आप फुरसत मिले ज़रा पढ़िये
वो गज़ल की किताब होती हैं।
जान लेती है एक ही पल में
नीयते जब ख़राब होती हैं।
ख़ूबसूरत बला नही कहिए
वो बड़ी लाज़वाब होती हैं।
शख्सियत पर उठे सवालों के
औरतें ख़ुद ज़वाब होती है।
हर जवां दिल सज़ा रहा जिनको
जिंदगी भर का ख़्वाब होती हैं।
रोज़ सपने नयन सजाते हैं
रोज़ वो कामयाब होती हैं।
✍️ सीमा 'नयन' ( देवरिया, उत्तर प्रदेश )
गुरुवार, मार्च 16, 2023
🌻 मौन तोड़ मुस्कराइए 🌻
बैठे चुप मौन साध,भावना छुपा अगाध
तोड़ सारे बांध आप, थोड़ा मुस्कराइए।
गई फागुनी बहार, बही चैत की बयार
मन में खुशी अपार, गीत कोई गाइए।
मन आज डोलता है, सुनो कुछ बोलता है
सुनिये हमारी कुछ, अपनी सुनाइये।
मन में जगी है आस, कहती है हर सांस
जा रहा है मधुमास, आप रुक जाइये।
डाल डाल बौर सजे, पत्तो की पाजेब बजे
कूजती कोयलिया, सुकंत को जगाइए।
कर्णफूल करधनी, चली कहां बनी ठनी
टिकुली किरन सम, चम चमकाइए।
चैत लाया नया साल, सभी जन हों निहाल
सुधरे सभी के हाल, खुशियां मनाइए।
देखो आये नवरात, पुलकित हिय गात
आ रही हैं अंबे मात, शीश तो झुकाइए।
मौन तोड़ हाथ जोड़, आज सारी लाज छोड़
फोड़ नारियल मां से, रिद्धि सिद्धि पाइए।
व्रत दान उपदान, हो बुराई बलिदान
देख देख मां की शान, बलिबलि जाइए।
✍️ सीमा 'नयन' ( देवरिया, उत्तर प्रदेश )
बुधवार, मार्च 15, 2023
🌻 इतनी सी चाह मेरी 🌻
हे ! दया के सिंधु, हे ! नेह के सागर,
भर दीजिए स्नेह से मेरी यह रिक्त गागर।
सब पाप कटे इस कुंठित कलुषित मन के,
तर जाए यह निर्विघ्न भवसागर से।
ज्ञान का निर्झर बहे अविरत अविरल,
अज्ञान के तम से मुक्त हो यह अकिंचन।
अभिमान की स्याह से दूषित है अंतरतम,
भर उठे स्वमान से मेरा यह अंतर्मन।
चंचल, अस्थिर है चित्त जो मेरा पल-पल,
एकाग्र शांत हो लीन ध्यान में हर पल।
है विनती मेरी परम पिता-परमेश्वर,
हो प्राप्त सद्गति को यह काया नश्वर।
तू निकट हो मेरे उड़े जो प्राण पखेरू,
इतनी सी चाह बस मेरी मेरे स्वयंभू।
✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )
मंगलवार, मार्च 14, 2023
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन होली रंगोली साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पावन पर्व होली के उपलक्ष्य में ऑनलाइन होली रंगोली साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - जीवन के भिन्न-भिन्न रंग' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर समूह से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी भावनाओं और विचारों से समूह का ध्यान आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत शब्द रत्न' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने जीवन में रंगों की विशेषता व महत्वता बताते हुए सभी देशवासियों को पावन पर्व होली की शुभकामनाएं दी। उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और बताया कि समूह आगे भी विभिन्न महत्वपूर्ण दिवसों एवं पर्वों पर इसी तरह से ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सव आयोजित करता रहेगा तथा नए रचनाकारों को अपनी साहित्यिक प्रतिभा दिखाने के लिए साहित्यिक मंच उपलब्ध करवाता रहेगा। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कविता कोठारी, शशि सिंह, सीमा मोटवानी, मधु श्रीवास्तव रचनाकारों के रहे।
गुरुवार, मार्च 09, 2023
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन महिला दिवस विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ऑनलाइन महिला दिवस विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - महिला है विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देशभर की रचनाकार शख्सियतों ने भाग लिया। जिन्होंने एक से बढ़कर एक महिला सशक्तिकरण तथा महिला के भिन्न-भिन्न रूपों पर आधारित अपनी उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश ) और कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल ) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत महिला आशीष' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने संसार की समस्त महिलाओं को कोटि-कोटि नमन करते हुए उनकी सांसारिक उपलब्धियों और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके निस्वार्थ सहयोग की सराहना की। उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन भी किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सीमा मोटवानी, कविता कोठारी, मधु श्रीवास्तव, शशि सिंह रचनाकारों के रहे।
बुधवार, मार्च 08, 2023
🐾 जिंदगी अनिश्चित है 🐾
जिंदगी शायद इतनी ही अनिश्चित है
जैसे सुबह घास पर चमकती शबनम
दिखे तो अपने पूरे शबाब के संग
और फिर अचानक भाप हो उड़ जाए।
हाँ, जिंदगी शायद इतनी अनिश्चित है
जैसे एक बुलबुला हो पानी का
सतरंगी सी, सारी कायनात के रंग समेटे
और पलक झपकते एक शून्य हो जाए।
या फिर बहती पुरवाई हो जैसे
सहला जाए, अठखेलियां करे
छू जाए तो तन मन शीतल कर जाए
और पल में जाने किस ओर उड़ जाए।
जिंदगी शायद इतनी ही अनिश्चित है
जैसे ये एक खूबसूरत रंग भरा गुब्बारा
आसमां को छूने का जुनून लिए उड़ता जाए
पर क्षण में अस्तित्व हवाओं में बिखर जाए।
या फिर एक पहाड़ी दरिया की तरह
तमाम ख्वाहिशें समेटे गिरिफ्त में अपने
बहे तो शिद्दत की रवानी हो, मगरूरियत हो
और अगले ही पल पानी फ़ानी हो जाए।
जिंदगी शायद इतनी ही अनिश्चित है
कि आज एक मेला रंगीनियत हो
हो नाटक या हो कठपुतली का
फिर डोर एक पल में टूट जाए।
✍️ शशि सिंह ( शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश )
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...