मंगलवार, नवंबर 08, 2022

⏲️ समय का व्याकरण ⏲️











समय का व्याकरण 

और हम...

 के जाल में उलझे

बुनते ताने बाने

छोटा बड़ा 

क्या घटाऊँक्या बढ़ाऊँ

रिश्ते घटतेअसंवेदनशीलता बढ़ते

देखते सब कुछ

मोहमाया के जंजाल में फँसे...

ज़िंदगी हमपर जैसे लगातार कोई तं कसे,

 का भी खेल निराला

लयसुरताल पर पड़ गया ताला...

जीवन की डगर कभी इधर से गुजरे

तो कभी उधर से गुजरे

जिंदगी करती दिखती बिन ताल के मुजरे...

सोचने बैठे अंअः

होंठो पर हंसी गायब स्वतः..

कितने और उतार चढ़ाव 

जाने क्या है जीवन का बहाव...

आँखों की नदी अब बनी समंदर 

गहरी वेदना इसके अंदर....

कुछ भी नही बचा अब शेष 

चल रही हैं बस साँसें और धड़कन...

और समय के इस व्याकरण में

बस उलझे रह गए हम...


   ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

26 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है कवयित्री महोदया. क्या ख़ूब कही आपने-

    क्या घटाऊँ, क्या बढ़ाऊँ
    रिश्ते घटते, असंवेदनशीलता बढ़ते,
    देखते सब कुछ
    मोहमाया के जंजाल में फँसे...।

    बहुत बधाई आपको🌹❣️

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  2. बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति है आपके द्वारा। आपको पढ़ना बड़ा ही सुखद होता है। ऐसे ही लिखती रहें और हिंदी भाषा को समृद्ध करती रहें। बधाई एवं शुभकामनाएँ🌷🌷🥰

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  3. अति मनभावक प्रस्तुति

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  4. Itna shaandaar aur arth poorna lekhan aap hi kar sakti hain💕. Pranayam hai aapki lekhni ko🙏🏻🌹💕

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  5. जीवन के करीब है ,बहुत बेहतरीन

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