शनिवार, नवंबर 12, 2022

⏲️ वक्त ⏲️








वक्त !
हमेशा एक सा नही रहता !
वक्त !
खराब-अच्छा कभी हुआ ही नही,
खराब-अच्छे हुए हैं  "हम"
कोसना !
वक्त को क्यूं ?
दोष खुद को भी कभी !
झांकना जब गिरेबान में था,
हम !
घड़ी की सुईयों की रफ्तार देखते रहे,
वक्त !
रूका सा है !
"वह" चला ही कब था,
दौड़ तो तुम रहे हो,
"अन्धी दौड़ें "
जिनके छोर तलाशते,
बीतेंगी सदियां !
साथ ही !
बीतेगा मनुष्य भी,
वो वक्त ही था,
जब बिछीं खुशियों की रंगीन चादरें !
और वो भी,
वक्त ही था !
जब ! रूदालियों ने पीटी छातियां !
वक्त के पहियों के साथ, 
दौड़ते रहे हम,
या !
हमारे साथ दौड़ा वक्त !
कौन जानता है !
समय ने छलनी किये तमाम सीने,
तो !
बजाई शहनाईयां भी !
विदाई की अन्तिम बेला में,
जब !
प्रेयसी ने रोके पलकों पर "अश्क"
कभी किसी वक्त !
बाहों में झूलकर छेड़े थे,
हज़ारों राग भी !
वक्त-वक्त की बात है !
कभी दुःखों के साझीदार भी,
बन जाते हैं "मुखौटे"
काल की मार से बचा है कोई  !
जो ! तू बचेगा !
बस तू !
वक्त से कदम ताल मिला !

✍️ कल्पना यादव ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

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