जग में सब सुख से बढ़कर
होता है मां का आंचल
मां ही मंदिर, मां ही मस्जिद
मां ही है गिरिजाघर
मां के कदमों में ही
होती है सारी जन्नत
जिस घर में रहती है मां
वह घर है स्वर्ग से बढ़कर
युगों-युगों से मां की
गाथा का गुणगान
करते है वेद-पुराण
मां के आंचल के तले
पले-बढ़े है स्वयं भगवान
पवन होती है मां की ममता
निश्चल होता है इसका प्रेम
पानी भी जिस को छूकर
बन जाता है गंगाजल
मां अपने बच्चे के ऊपर
कभी ना आने देती कष्ट
सारी विघ्न बाधाओं को
पल में वह लेती है हर
भूल से भी ना दुखाना
कभी अपनी मां का हृदय
वरना सुख ना पाओगे कहीं
जीवन में मच जाएगा प्रलय।
✍️ सम्पदा ठाकुर ( मुंगेर, बिहार )
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां 😊😊🌹🌹
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