गुरुवार, जुलाई 28, 2022

🦚 प्रेम मेरा जिंदा रहेगा 🦚






मैं रहूं या ना रहूं पर 

प्रेम मेरा जिंदा रहेगा

भले ही दूर होगी परछाई मेरी

पर प्रेम बस तुमसे रहेगा


पढ़ते है सब खुली आंखों में प्रेम

तुम मेरी बंद आंखों में भी पढ़ लेना

काश ! लूं तेरी गोद में आखरी सांसे

हर सांस बस तेरा नाम रहेगा


तेरे नाम की बिंदिया लगाना

तुझ से ही खुद को संवारना 

मेरी रूह बनकर तू मुझमें ही रहेगा

हाँ प्रेम मेरा जिंदा रहेगा


अगर चल भी जाऊं इस जहां से मैं

तो भी पुकारना एक आवाज दिल से

महसूस हो जाऊंगी तुझे तुझमें ही 

क्यूंकि प्रेम मेरा जिंदा रहेगा


✍️ वैष्णवी नीमा ( झालावाड़, राजस्थान )

बुधवार, जुलाई 27, 2022

🦚 साथ यूँ ही चलते रहना 🦚








बस साथ यूँ ही चलते रहना

मीठी बातों से छलते रहना


मैं रहूँगी चुप और ठहरी सी

तुम दरिया से बहते रहना


मैं भले ही सिल लूँ लब अपने

तुम आँखों को पढ़ते रहना


मैं चुराए रखूँगी आँखें भी

तुम बस उनमें तकते रहना


मैं कहूँगी अब मत बोलो कुछ

तुम प्यार-प्यार कहते रहना 


✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

🦚 प्रेम जटिलता 🦚








प्रेम की अनगिनत
परिभाषाओं, व्याख्याओं
और समीक्षाओं के
बीच इसकी जटिलता
सर्वोपरि हैं, हम कहते
तो हैं कि हमनें प्रेम किया
पर क्या सच में किया
निःस्वार्थ प्रेम स्वतः 
घटित होता है
मौखिक आडम्बरों
से परे, शब्द सीमाओं
के चयनित लक्ष्य को 
लांघ कर मौन की
गूँज में हर तरफ
बिखर जाता है और
छिप जाता है आँखों
के उस कोने में जहाँ
स्वप्न सोते हैं.....

✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )

मंगलवार, जुलाई 26, 2022

🦚 स्त्री हूँ मैं 🦚








स्त्री हूँ मैं
जननी मैं ही
भार्या मैं ही 
पुत्री भी पुत्रवधू भी
बहन भी मैं ही हूँ
धरती जैसी स्थिर भी 
नदी जैसी चंचल भी 
तितली जैसी कोमल भी 
फूल जैसे कांटों से घिरी हूँ मैं
कमल हूँ
कीचड़ को घर बनाती हूँ 
अन्नपूर्णा बन अन्न को अमृत बनाती हूँ
कहीं कहीं पूजी जाती 
वैसे अक्सर दुत्कारी जाती हूँ
स्त्री हूँ मैं
आंखों में फांस सी खटकती हूँ
जो पुरुषों से आगे बढ़ जाती हूँ
रूपवान मैं, गुणवान भी
भाग्य को बदलने की क्षमता भी 
लक्ष्मी भी मैं, सरस्वती भी 
और शक्ति स्वरूपा भी
स्त्री हूँ मैं

✍️ प्राप्ति सिंह ( हैदराबाद, तेलंगाना )

🦚 विरहिन 🦚








मेरे उर जज़्बात, कभी ना मरते,
देते जो मेरा साथ, कभी मिल हंसते,
रोता दिल दिन रात, जख्म हैं गहरे,
प्रीत दिवानी पीर, सैंकड़ों पहरे।

टूटा दिल मजबूर, भाव सब जख्मी,
रैना घुप घनघोर, गुमी सब उर्मी,
सांझ निष्प्राण सदा, नयन बनज़ारे,
छुई मुई सी भोर, सुस्त उजियारे।

पागल प्रतिक्षित पहर, अंगना पुकारे,
धडकन झुर-झुर झुरे, आतुर निहारे,
बांझ प्रीत नित रटे, घिरे ना घटाएं,
दरस दिवाने नयन, अश्रु नैन बहाएं।

✍️ सुखमिला अग्रवाल 'भूमिजा' ( जयपुर, राजस्थान )

शुक्रवार, जुलाई 22, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन सिनेमा साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा सिनेमा के समाज पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों को दर्शाने के लिए ऑनलाइन 'सिनेमा साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'सिनेमा का प्रभाव' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'सिनेमा साहित्यिक महोत्सव' की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन सिनेमा साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सावित्री मिश्रा (झारसुगुड़ा,ओड़िशा) और भारती राय (नोएडा, उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य पुष्प' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सिनेमा को मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन बताते हुए सिनेमा के समाज पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों के बारे जानकारी दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया।

गुरुवार, जुलाई 21, 2022

🦚 सिनेमा और हम 🦚

भारतीय समाज और जीवन पर फिल्मी दुनिया ने आइडियल की तरह रोल अदा किया है। लोगों की जीवन शैली पूरी तरह सिनेमा से प्रभावित हुई है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनो पहलू हैं। जिस तरह साहित्य समाज का दर्पण होता है उसी तरह सिनेमा भी समाज को प्रतिबिंबित करता है। इसका मूल उद्देश्य मनोरंजन होने के बावजूद इसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ लोग कहते हैं कि सिनेमा बुराई फैलाता है। पर यह हमारे देखने के नजरिए पर निर्भर करता है फिल्म 'हकीकत' सन् 1962 के चीन-भारत के युद्ध पर आधारित है। चीनी सैनिक हमारे देश की तरफ बढ़ते आ रहे थे। भारतीय सैनिक वीरता के साथ युद्ध कर रहे थे। इस फिल्म में कैफी आज़मी का लिखा हुआ गीत कर चले हम फिदा बहुत प्रसिद्ध हुआ है। इसे सुनकर  हजारो लोग सेना मे शामिल होने निकल पड़े। ऐसी फिल्मे लोगों को प्रेरणा देती है। उनमे देशभक्ति का जज्बा कायम रखती हैं। यह फिल्म समाज के युवाओं को देश के लिए मर मिटने को प्रेरित करती है। कर चले हम फिदा गीत सुन कर रगों मे वीरता का जोश भर जाता है। मुझे यह फिल्म और इसका गीत बहुत पसंद है। ऐसी फिल्में समाज में सकारात्मक प्रभाव डालती है।

                 ✍️ सावित्री मिश्रा ( झारसुगुड़ा, ओड़िशा )




रविवार, जुलाई 17, 2022

🦚 यादें 🦚










यूँ तो होंगे हर जगह आपके मुरीद बेशुमार।

पर जो भीड़ की तन्हाई में आएं पास वो यादे हमारी होंगी।।


यूँ तो आप हँसेंगे महफ़िल में खु कर के सब के साथ।

पर जो ला दें मोती पलकों पे इक बार वो यादें हमारी होंगी।।


यूँ तो तैरते होंगे ख़्वाब आपकी आँखों में बेशुमार।

पर जो जगा दें चौंक के उस रात वो यादें हमारी होंगी।।


यूँ तो गुल ही गुल बिखरे होंगे राह में हर तरफ़।

पर जो बिखरा दें ख़ुशबू बेहिसाब वो यादें हमारी होंगी।।


यूँ तो चुभते होंगे पाँवों में आपके भी कभी ख़ार

पर जो रोक ले थाम कर दामन आज वो यादें हमारी होंगी।।


यूँ तो शब पूनम भरी होगी गुलशन--हयात में।

पर जो करवटों में कटेगी रात वो यादें हमारी होंगी।।


यूँ तो खाएँगे वफ़ा की क़समें भी बहुत मिलने वाले।

पर जो निभायेंगी ख़ामोश वफ़ा सा वो यादें हमारी होंगी।।


      ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, जुलाई 13, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन खान-पान विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को खान-पान के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'खान-पान विशेष साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'खान-पान की वस्तुएं' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'खान-पान विशेष साहित्यिक महोत्सव' की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन खान-पान विशेष साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य सुधा' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने लोगों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए खान-पान पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में प्राप्ति सिंह और भारती राय द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया।

सोमवार, जुलाई 11, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन मुहावरा विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा हिंदी भाषा के मुहावरों के महत्व, विशेषता तथा उपयोगिता का अहसास लोगों को करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'मुहावरा विशेष साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'मुहावरे हैं विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'मुहावरा विशेष साहित्यिक महोत्सव' की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन मुहावरा विशेष साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में भारती राय (नोएडा, उत्तर प्रदेश) और प्राप्ति सिंह (‌हैदराबाद, तेलंगाना) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने लोगों को हिंदी भाषा के मुहावरों की विशेषता व उपयोगिता के बारे में बताया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया।

शुक्रवार, जुलाई 08, 2022

🍡खान-पान संस्कार 🍡








संभाल रही गृहस्थी अपनी 
पर छोटी-छोटी बातों में 
याद आती हैं नानी मेरी
साथ ही याद आती हैं
जो नाना ने बताई और सिखाई
भोजन है हमारे जीवन का आधार 
खान-पान के ही इर्द-गिर्द है 
अच्छी सेहत और संसार 
त्योहारों के मूल में 
हर गृहिणी की 
पहचान का केंद्र है 
खान-पान का संस्कार

छोटे बच्चे थे जब हम 
हर इतवार नानी घर जाते
नानी हमारी प्यारी सी 
सबसे सुंदर सबसे कोमल 
गोद में हम उठा लेती
ले जाती हम उस कमरे में 
जहां देर रात जाग कर 
खजाना बना रखती थी
हमारी पसंद की 
गुझिया, गुलाबजामुन
लौंगलता, चमचम
या फिर रसगुल्ला, रसमलाई
खीरकदम, खीरमोहन 
लड्डू और बर्फी 

हम उनके आस-पास
ही मंडराते थे
नानी संतरे भी 
छील के खिलाती
और अंगूर भी 
बाद नानी के ये जिम्मा 
नानाजी ने उठा लिया
नही दिया हम बच्चियों को 
कभी एहसास नानी के न होने का 
जारी रखी नानी की 
बनाई हुई परंपरा 
निभाया सदा ही उनका
खान-पान का संस्कार

✍️ प्राप्ति सिंह ( हैदराबाद, तेलंगाना )

गुरुवार, जुलाई 07, 2022

🍡 दादी के हाथ की बालूशाही 🍡








उन्हें पता था बहुत चाव से 

छुप-छुप सबसे नज़र बचा के

मुठ्ठी में छुपा ले जाती थी

ओसारे के कोने छुप के 

मैं बड़े चाव से खाती थी

दादी के हाथ की बालूशाही 


वो प्यारा निश्छल बचपन 

कभी सोच पाया ना ऐसे 

जब रोज़ छुपाकर खाती मैं

तो डब्बा ना खाली होता कैसे 

मेरा मन कभी नही भरता पर 

दादी डब्बा भरती जाती थी 

उनके हाथ मैं चूमा करती और 

दादी लाड लड़ाती जाती थी


कितने अनुराग से दादी मेरी

बड़े जतन से पूरे मन से 

दुनियाँ भर का स्नेह मिलाकर 

उपलों वाला चूल्हा जलाकर 

घर के आँगन में मुस्काती सी 

मीठा प्रेम मिलाती जाती

उनके प्रीत की शक्कर पाकर

कितनी मीठी हो जाती थी

दादी के हाथ की बालूशाही 


अब ना रहा वो बचपन मेरा

ना ही दादी का साथ रहा 

अब ना रही वो स्नेहिल बातें

ना ही अब वो स्वाद रहा 

जब दादी स्मृति में आती

मैं बालूशाही लाती हूँ

उनकी स्नेहिल यादों में फिर 

मैं पल-पल खोती जाती हूँ

पर अब वो प्रेम नही मैं पाती 

ना वो स्वाद अनुभूत कर पाती हूँ 

अद्भुतसुस्वादु हुआ करती थी 

वो दादी के हाथ की बालूशाही


✍ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, जुलाई 06, 2022

🍁 प्रतीक्षा 🍁











तुम क्या जानो 

कितना कठिन होता है

पहाड़ सा वक़्त

प्रतीक्षा का

जब चाँद भी सर्द से 

सिहरता सा छुप जाए 

स्याह रात के आँचल में।


जब ओस की बूँदे भी 

मानो किसी होड़ में हों

मचलने को 

वसुधा की गोद में

जब सूरज अपनी

ऊष्मा में भी 

ठंड से ठिठुरता 

सर्द आलस्य में 

गुम हो कहीं 

बादलों के बंद 

किवाड़ में।


तब कोई बैठा है 

बेसब्री से प्रतीक्षारत

घड़ी की टिक-टिक के साथ

अपनी साँसें गिनता

कोई बैठा है प्रतीक्षारत

उन ओस की बूँदों संग

सूनी स्याह रात निहारता

कोई बैठा है प्रतीक्षारत

उन सर्द बादलों भरे 

श्वेत गगन के नीचे 

हरी घास पर 

शबनम बटोरता।


तब 

जाने कैसे 

विस्मृत कर देते हो तुम

जाने कैसे 

एक हिचकी भी 

नही आती तुम्हें

जाने कैसे 

आभास नही होता 

तुम्हें उसकी प्रतीक्षा का।


जाने कैसे 

नही महसूस कर

पाते हो तुम

कि कोई बैठा है 

आँखें बिछाए 

बार-बार बिखरती 

आस को 

पुनः-पुनः समेटता सा

मानो प्रतीक्षा करना ही 

उसकी नियति

बन गयी हो जैसे।


 ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...