गुरुवार, फ़रवरी 24, 2022

⏲️ बीते पल ⏲️




 



बीते हुए पल कभी लौट कर नही आते, 
 आज भी जब मायके की देहरी पर पाँव रखती हूँ,
 तो सारा बचपन आंखों के समक्ष घूम जाता है,
 चाहे-अनचाहे आंसू ढुलक जाते हैं,
 वह बचपन की गलियां,
 वह बचपन की बेफिक्री,
 वह सखियों के साथ घंटों बातें बनाना, 
 घंटों किताबों में खोए रहना,
 वह माँ के हाथों का लजीज खाना,
 बाबा का प्यार से माथा सहलाना,
 वह होली-दिवाली पर घर की रौनक,
 वह भाई-बहनों की धमा-चौकड़ी,
 आज ख्वाहिशों की लंबी क्रमसूची बनी है,
 रात दिन का चैन ओ सुकून नही है,
 काश ! वह बचपन के पल फिर से वापस आ जाएं,
 चाह कर भी उन पलों को वापस नही ला पाती,
 कैद है पर आज भी मेरे स्मृति पटल पर, 
 बचपन के वो बीते हुए पल।

                                 ✍️ डॉ. ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

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