चारों ओर कैसी हवा, कैसा दृश्य है
आज समय से पहले सब व्यस्क है
समय का पहिया जब चले
किस ओर, किस दिशा चले
काल चक्र में फंसकर सृष्टि
प्रहार झेलती कितने कुदृष्टि
संतुलन बनाना सच आवश्यक है
आज समय से पहले सब व्यस्क है
दिन रात मेहनतकश जो लोग
कितने आघात इन्हें कितने रोग
जीवन दोपहर भी ढ़ली बेकार
कर रहे बैठ सुबह का इंतजार
हर किसी को कहाँ सब मयस्सर है
आज समय से पहले सब व्यस्क हैं
जीवन संध्या के काल पहर में
सब कुछ घूम रहा जब ज़हन में
शाम धुंधली के राही ठहर जा
इस पल में बस जीवन जी जा
जीवन उसी का जो ख़ुद सक्षम है
आज समय से पहले सब व्यस्क है
हर पहर, हर घड़ी किसका इंतजार
ये इंतजार ही तो प्रिय मौत समान
यूँ जीवन खाली समाप्त ना करना
जब आएगी कयामत तभी मरना
बुरे क्षण भले क्षणिक पर भक्षक हैं
आज समय से पहले सब व्यस्क है
कोई क्षण नही कि सूकून मिला
जो मिला उससे अधिक है दिया
क्या शिकायत और कैसा गिला
सुनने वाला कभी कोई न मिला
लम्हों की सौगात बड़ी अनमयस्क है
आज समय से पहले सब व्यस्क है
✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )
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