ऐ वक्त ! अब तो थम जा
दो घड़ी तो रुक ज़रा
मैं जिन्दगी भर भागा हूँ
लगातार तेरे साथ-साथ।
अब कुछ तो मेरी उम्र का ख्याल कर
कब तक तेरे साथ यूँ ही भागता रहूँगा
ना दिन देखा ना रात बस काम-काम
नही रुकी मेरी तेरे साथ कदम ताल।
ना चैन से कभी भोजन किया ना आराम
ना कभी खुशियाँ ही ढंग से मना पाया
जन्मदिन बच्चे का चाहे, हो कोई त्यौहार
रुका नही निरन्तर चलता रहा तेरे साथ।
अब में थक गया हूँ बूढ़ा भी हो गया
शरीर नही देता साथ ना कोई अपना
सब तेरे साथ ही भाग रहे तू ना छूटे
ऐ वक्त ! तू बड़ा ही निष्ठुर है निर्दयी है।
नही तुझमे प्रीत, कितना साथ दिया तेरा
आज तूने ही सब कुछ छीन लिया मेरा
तेरी वजह से आज नही कोई मेरे साथ
इसलिए अपनो को वक्त दो मानो बात।
✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें