सूर्य और सूर्य-पुत्र का अदभुत मिलन।
मकर राशि में पिता-पुत्र का आलिंगन।
अलभ्य लाभ, अनुपम संजोग, मकर संक्रांति।
ज्योतिष शास्त्र की निराली, विरली पुनरावृत्ति।
सूर्यदेव की अद्भुत चाल, उत्तरायण में प्रयाण।
करवटे बदलता मौसम, तरकश में मदन बाण।
शरशैय्या पर भीष्म पितामह ने त्याग दिए प्राण।
कहीं चमकती कोंपले, कहीं झड़ते जीर्ण पर्ण।
कहीं संक्रांति, बिहू, पोंगल, देश का कोने-कोने में उजास।
तन में मिठास, मन में मिठास, लम्हा-लम्हा घूली मिठास।
"तीळ-गुळ घ्या, गोड गोड बोला" स्नेह की अनुपम बेला।
रिश्तों में स्निग्धता, संबंधों में महकेगी जूही, बेला।
प्रकट देव की आराधना, दान-पुण्य-काल का मेला।
दीन-दुखियों का सहारा, ठिठुरन में रजाई, मुँह में निवाला।
संक्रांति-पर्व, संक्रमण-पर्व, सूर्य-पूजन पर्व।
ऋतु परिवर्तन, मानवता संवर्धन, आनंद-उल्हास पर्व।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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