बहुगुणी तिल के साथ गुड़ के स्नेह मिलाप से,
मिठास घुले जीवन में, मीठी मिश्री जैसे बोलो से,
प्रिय से मिलन की चाहत खिली रहे हरदिल में,
प्रेम की परिभाषा महकती, चहकती रहें हृदय में।
रवि किरणों की ऊष्मा, मकर संक्रांति लायी उजास,
आह्लादित, अनुपम सुषमा, आलोकित सुंदर प्रभास,
खिली खिली प्रकृति, धरा, गगन, सृष्टि, सारा चमन,
ठिठुरती ठंड, गुनगुनी धूप सुहासी लगे मनभावन।
मकर संक्रांति के सुअवसर पर सुपात्रे करे दानधर्म,
सूरज भगवान की उपासना, अर्घ्यदान, करे सत्कर्म,
रंग बिरंगी सुंदर पतंगों से सजा दो नील गगन सारा,
खुशियां बांटो, सुख, चैन, आनंद का हो उजियारा।
पावन गंगा मैया, शिव जटाओं से कल कल बहती,
भागीरथ जी के अथक प्रयास से अवतरित हुई जगती।
सुजलाम, सुफलाम, सुखदां हरी भरी खिली वसुंधरा,
मकर संक्रांति को सागर समर्पित हुई गंगा की धारा।
मकर संक्रांति का दिन हैं अति पावन, अति विशेष,
मीठी वाणी, मीठी बोली का देता हैं शुभ संदेश,
रहे न कोई प्रयास अशेष, अधूरी न पूजा-आराधना,
जीवन हैं संघर्ष, हो तप, त्याग, कठोरतम साधना।
✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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