बहुमूल्य है हीरा, कोहिनूर।
पूर्णिमा के चांद का अजब नूर।
फिज़ा में लाए गजब का सुरूर
पूर्णिमा के चांद का अजब नूर।
फिज़ा में लाए गजब का सुरूर
रिश्तों में दोस्ती, मशहूर।
अंबर तले महफूज़ धरती।
दोस्ती महफ़िल में रंग भरती।
न शर्ते, न बंधन, न गिनती,
दिल से दिल के तार जोड़ती।
न निंदकों की कांव-कांव।
न कोई ऊंच-नीच, भेद-भाव।
कालचक्र का घूमना, स्वभाव,
सुख-दु:ख मे राखे सम्यक भाव।
दोस्तों से सांझा हो जिंदगी,
धूप-छांव सही वक़्त से करो दिल्लगी।
वक़्त की रेत पर सजे रंगोली,
हर पल खुशियां बने हमजोली।
दोस्त! हमसफ़र, राजदार।
लुटाए सदा प्यार-दुलार।
मुसीबतों में साथ दे वो यार,
ज़ख्म पर मरहम लगाए बार-बार।
शीतल पवन सा हो यार,
विपदा में दे तिनके सा आधार।
दुश्मन के लिए नंगी तलवार,
जान लूटाने को सदा तैयार।
बिना बोले समझे दिल का हाल,
खुशियों से करे मालामाल।
भागीरथ प्रयास का हें कमाल,
किस्मत की लकीरों से चमके भाल।
न उम्र की सीमा, न लिंग का भेद,
दोस्ती हैं रिश्तों का किला अभेद्य।
न अमीरी-गरीबी, न राजा-रंक,
दोस्ती है जिंदगी का सुनहरा अंक।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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