खुदा की अनमोल इनायत ये आंखें,
जहां में सारा खेल ही आंखों का ही है,
रंगीन जहां दिखाती आंखें,
बिन आंखें सब सून,
जहां...जब लफ्ज़ थोड़े पड़ जाएं,
आंखें सब कुछ बयां कर जाती हैं,
भूरी, नीली, काली आंखें,
चेहरे की सुंदरता बढ़ाती हैं,
नयन, चक्षु, दृग, लोचन,
कविताओं में कहलाती हैं,
ग़र बीमारी से जूझ रहे,
आंखें सेहत का राज,
बयां कर जाती हैं,
ये आंखें हैं जो गैरों को अपना,
अपनों को पराया बनाती हैं,
चेहरे की आंखों से सुंदर,
मन की आंखें भाती हैं,
हो मन व्यथित या हर्षित ग़र,
आंखें अश्रु छलकाती हैं,
ये आंखें मां के आंचल में खुल,
अंत समय सो जाती हैं,
क्यों ना हम.....
सिर्फ अच्छा देखें,
जाते-जाते इस जहां से,
किसी का जहां रोशन कर जाएं।
जहां में सारा खेल ही आंखों का ही है,
रंगीन जहां दिखाती आंखें,
बिन आंखें सब सून,
जहां...जब लफ्ज़ थोड़े पड़ जाएं,
आंखें सब कुछ बयां कर जाती हैं,
भूरी, नीली, काली आंखें,
चेहरे की सुंदरता बढ़ाती हैं,
नयन, चक्षु, दृग, लोचन,
कविताओं में कहलाती हैं,
ग़र बीमारी से जूझ रहे,
आंखें सेहत का राज,
बयां कर जाती हैं,
ये आंखें हैं जो गैरों को अपना,
अपनों को पराया बनाती हैं,
चेहरे की आंखों से सुंदर,
मन की आंखें भाती हैं,
हो मन व्यथित या हर्षित ग़र,
आंखें अश्रु छलकाती हैं,
ये आंखें मां के आंचल में खुल,
अंत समय सो जाती हैं,
क्यों ना हम.....
सिर्फ अच्छा देखें,
जाते-जाते इस जहां से,
किसी का जहां रोशन कर जाएं।
✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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