खोते-पाते, हँसते-गाते,
साल एक फिर बीत गया।
नये साल ने दस्तक दी है,
मन मे उल्लास छाया नया।
जाने वाले लम्हों ने भी,
अनुभव कई समेटे हैं।
मिलन और विरह भावों के,
धागे कई लपटें हैं।
गत वर्ष के कर्तव्य जो,
हमसे, बेपरवाही मे छूट गए।
आने वाले साल उसे भी,
खास जगह उसे बिठलाए।
कुछ अपने सच सपने होंगे,
कुछ बिछुड़े, अपने संग होंगे।
सुख-दुख मे हम साथ रहेंगे,
ऐसी सुखद कामना लेकर,
नये साल ने है ललचाया।
एक दिन का ये उत्सव ना हो,
पूरे साल महोत्सव का हो।
सह असतित्व के भावों में,
भीगा नया साल कुछ ले आया।
ना हिंसा की ओर बढ़े हम,
ना मदिरा की ओर झुके हम।
अभ्युदित रवि के दर्शन कर,
नये साल की ओर बढ़े हम।
ऐसे सरल सहज भावों में,
उत्सव की नव उमंग लिए।
✍️ नीति झा ( पटना, बिहार )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें