तम से भरा, पीड़ा लिए घनघोर
वैश्विक महामारी भरा साल एक और
दुख, बीमारी, जनहानि और अवसाद
पुनः न आए किसी को याद।।
गहन तिमिर उपरांत उजाला
प्रकृति का खेल निराला
संभाले समेटे स्वयं को मानव
आशाओं के नित नव पल्लव।।
मानव मस्तिष्क हार न माने
नित नई रार वह ठाने
जीने की यही जिजीविषा
प्रदत्त करती नई दिशा।।
अलस भोर की नई किरण
नव जीवन का आमंत्रण
मनुज कमर कस है तैयार
हर रण अब मुझको स्वीकार।।
विषाणु पड़ गया था भारी
मैं हारा टूटा बिखर गया
हर युद्ध हर काल में किन्तु
थपेड़े खा मैं निखर गया।।
तिथियों का बदला जाना
भाग्य का नव ताना बाना
खुशी, हर्ष, इच्छा, अपेक्षा
प्रकृति संग ही रहे सुरक्षा।।
जीवन में मिली सीख नई
अति से सदा दूरी भली
प्राकृतिक जीवन सहज सरल
स्वच्छ वायु जल हो निर्मल।।
नव वर्ष का दैदीप्यमान भास्कर
आशाओं, सफलताओं को देता स्वर।।
✍️ डॉ. ज्योति प्रियदर्शिनी श्रीवास्तव ( ग्वालियर, मध्य प्रदेश )
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