भूचाल-सा बीता साल इक्कीस, झकझोरा जग सारा,
बार-बार आगाह कर चेताया, हुआ गहन अंधियारा।
बिखरे घर, सहमा-सा इंसान, हतबल, हताश, मौन,
लुटे भरे पूरे परिवार, निशब्द खुशी, सुने घर-आंगन।
हौसला न खोया, हिम्मत, धैर्य से बनाये रखी उम्मीद,
खोज ली वैक्सीन, फासले बना घर में खुद हुआ कैद।
मास्क, साबुन, सैनिटाइजर, फासले, बने हथियार,
अंतर्मन में खोज रहा अंधियारे को चीरता उजियार।
लापरवाह मानव समझ गया अपनी परम नादानी,
प्रदूषण मुक्त पर्यावरण प्रतिबद्धता की बात मानी।
उम्मीद की किरणें झिलमिलाई, जगमग आनंदोत्सव छटा,
अंधियार हटा, डर टूटा, महामारी का भय संभवतः मिटा।
नवांकुर-सी आशाएं पल्लवित, उमंग तरंगित, सजा संगीत,
प्राची से लालिमा लिए आयी विहाना उल्लसित।
ड़र के आगे जीत का विश्वास हैं मन में चहका,
हंसी-खुशी, आशा-पुष्पों से नववर्ष स्वागत में जग महका।
नववर्ष के नवरंग, नव संगीत, नव उम्मीद के अद्भुत चितेरे,
परम प्रभु कृपा से कण-कण में आनंद, उल्लास लेगा हिलोरे।
मंगलभावनायें, नववर्ष की अनंत हार्दिक शुभकामनाएं,
सतरंगी सपने, उमंग तरंग, पल्लवित हो नवल आशाएं।
✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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