कभी ना जाए मेरा बचपन
उमर साठ की हो या हो पचपन
कभी ना जाए मेरा बचपन
कभी कभी अकेले में
जी चाहे खूब नाचूँ
बुला लूँ देकर आवाज
जोर से चिल्लाऊँ
हाँ वैसे ही खुश हो जाऊँ
जैसे खाली कमरे में अपनी ही
आवाज की प्रतिध्वनि सुनकर
बार बार चिल्लाना
हाँ कितना भाता था
तितलियों को पकड़ बांध
धागे में उठाना
कितना प्यारा लगता था
कोयल की कूक में आवाज मिलाना
कभी बिल्लियों को चिढ़ाना
कभी बंदर सा मुंह बनाना
पेडो़ं की डाली पर झूले
परियों के किस्से में
सबक स्कूल की भूले
गिल्ली डंडा खोखो कबड्डी
खेल कितने थे प्यारे
कितना प्यारा था
माँ के आंचल का कोना
चिपक कर माँ के साथ सोना
दादी की मजेदार कहानी
एक था राजा एक थी रानी
सचमुच बचपन कितना सुहाना
खुशियों का होता खजाना
✍️ सविता 'सुमन' ( सहरसा, बिहार )
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