आज भी वह बचपन की,
अठखेलियां याद आते ही,
चेहरे पर चमक आ जाती है,
वह बचपन के खेल,
वह सुनहरे पल,
उन पलों को पुनः जी लेने की,
लालसा फिर से मचल जाती है,
ना किसी से राग ना द्वेष,
ना समय का कोई बंधन,
वो दोस्तों की मनमौजी को,
आज भी जीता है वह बचपन,
छुपम-छुपाई, पिट्ठू, नदी-पहाड़,
गिल्ली-डंडा जैसे खेल,
घंटों छत पर पतंगे उड़ाना,
गर्मी की छुट्टी में नानी घर जाना,
वहां कैरम, क्रिकेट, लूडो,
कंचे और लट्टू थिरका कर,
बार-बार खुश हो जाना,
वो घोड़ा-बादाम छाई....
गुलेल से निशाना लगाना,
सच बड़े ही खूबसूरत थे,
बचपन के खेल,
बड़े ही निराले....
बिंदास अठखेलियां.......
खेलता था बचपन।
✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )
बढ़िया प्रस्तुति! कोई लौटा दे मेरा बचपन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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