याद है मुझे वो मेरी काग़ज़ की नाव
जो बनाते थे हम अपने बालपन में
जो बनाते थे हम अपने बालपन में
जब भी होती थी बारिश भर जाता
पानी सब जगह और तब बनती थी नाव
कॉपी का पेज तो कभी अखबार
पिता जी डांटते थे कॉपी से नही
नाव बना पानी में चलाते-चलाते
दिन यूँ ही बीत जाता धमा चौकड़ी में
किसकी नाव ज्यादा देर चलती है
दूर तक जाती होड़ यही लगती
मस्ती के वो दिन बहुत याद आते हैं
वो प्यारे बचपन के बीते सुनहरे पल।।
✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )
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