मैं दीये बेचने वाली
रहती हूँ झुग्गी-बस्ती में
अपने पूरे परिवार के साथ
बैठी हूँ मै अपनी मेहनत से बनाए
मिट्टी के कई सामान व दीये बेचने
इनसे ही चलता है मेरा सारा घर-बाहर
दो जून की रोटी का है ये खेल
बहुत कम कीमत है इन सबकी
ले लो आप सब भी कुछ सामान
जो बन जाए मेरे घर भी त्यौहार
मेरे बच्चे भी खुश हो जलाये दीप
मिल जाए उन्हें भी मिठाई के दो टुकड़े
जी ले खुशी के वे भी पल दो चार
✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )
बहुत उम्दा
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