शनिवार, नवंबर 13, 2021

🕺बचपन होता कोमल निर्मल चंचल🕺




   



बचपन होता कोमल निर्मल चंचल
   छू ना पाए इसे कोई कपट वचन 
    भर देती दिल में उल्लास की छाया
       इसका निश्छल भोलापन।

    बचपन का बस एक ही सपना
       सारा जग है प्यारा अपना
        ना दौलत की चाह इन्हें 
       ना ईर्ष्या की राह है होती।

     इनके झगड़े मिटते पल में 
  यह है कमल खिले निर्मल जल में
        बचपन तो वह फूल है 
  जिसमें भरी पावन सुगंध है होती।

     इनकी दौलत कुछ कंचे हैं 
 और मां की टूटी चूड़ियों के टुकड़े
     जिन्हें संभाले रखते हैं यह
  लेकिन साथी को देना ना अखड़े।

      इनकी चाह ना घोड़ा गाड़ी 
और ना कोई बड़ी मूल्यवान सवारी 
 इनके लिए तो सबसे प्यारा माँ की गोदी 
   और पिता के कंधे पीठ की सवारी।

      कौन है अपना कौन पराया 
       इसकी ये पहचान ना करते
       वह इनका अपना है होता
       थोड़ा सा प्यार बस जो दे-दे।

  इनको नहीं है जाति धर्म से मतलब 
     ना यह समझे जग की नीति 
 ज्यों ज्यों बच्चे बढ़ते जाते जग से ही
    सीखें जग की यह कुटिल नीति।

   इनको जैसे है माता सबसे प्यारी 
 वैसे ही धरती माँ भी होती है प्यारी 
 खेलें दिन को धरती में लोट लोट कर  
  और रात को सोयें सुन माँ की लोरी।

 इनकी विस्तृत दुनिया है माँ का आँचल
  और पिता की बाँहें हैं निस्सीम गगन
  यह फूलों से कोमल प्यारे प्यारे हैं 
   और बचपन है विस्तृत उपवन।

   नन्हें बच्चे ज्यों ज्यों बढ़ते जाते हैं 
     अपना भोलापन खोते जाते हैं 
  जग की रीत इन्हें भी सिखला जाती
 अपनी कुरीति, कोमलता खोते जाते हैं।

    हम भी सीख लें कुछ बचपन से 
दिल निर्मल कर पूरे जग को अपना माने
    ईर्ष्या बैर द्वेष मैल को दूर हटा कर
   सब से प्यार करें हम क्लेश न पालें।
 
                  ✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )


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