बालक अधिकार माँग रहा,
गली, चौराहों और सड़कों पर,
बड़ी-बड़ी कमीशन बैठी,
मिला ना बालक को मुट्ठी भर।
बाल दिवस मनाए कैसे ?
जब 70% पीड़ित हैं,
रतन जड़ा आज कोट पर,
109 बालक रोज उत्पीड़ित हैं।
कलम बहुत ही क्रोधित हैं,
लिखना ना चाहे रत्ती भर,
जब 90% पीड़ित बच्चे,
सिसकी भरते अपने ही घर।
मुलभूत सुविधा से वंचित,
ना नृत्य ना नाटक होगा,
कांटों पर चला जो बचपन तो,
भविष्य में तांडव ही होगा।
प्रीत-रीत बदलना होगा,
हर बालक की ख़ातिर लड़ना होगा,
स्वतंत्र भारत के भविष्य की ख़ातिर,
सबको मिलकर बढ़ना होगा।
✍️ मंजू शर्मा ( सूरत, गुजरात )
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