परखो न बाहरी सुंदरता,
अंतस हो निर्मल पावनता,
विनय, विवेक, संयम, चारित्र्य,
सत्धर्म, संस्कार, मानवता।
दया, करुणा हो सद्भावना,
जीवदया, हो मंगल भावना,
अनुरागी मन, महके जीवन,
सजाये नवरंगी अल्पना।
सृष्टि प्रभु की मनोहर रचना,
मनमोहिनी यह कवि कल्पना,
मां सर्वोत्तम कृति कल्याणी,
ममतामयी नेह नजराना।
रवि किरणें, धूप सुनहरी,
चंदा की चांदनी रूपहरी,
कण-कण में सुंदरता चहुँदिशि
खिली-खिली ऋतु मनोहारी।
नजरिया हो तो दृश्य सुंदरता,
प्रभु कृपा से हरदिल महकता,
आलोकित आनंद उजाला,
भाव अर्चना, प्रभु शुकराना।
✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
बहुत खूब
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