मोहनी मूरत
क्या कम थी जो
मोर-मुकुट माथे पे धार्यो
मधुसूदन की मोहक मुस्कान पे
मीरा..मयूर सों चंचल मन वार्यो
सौंदर्य-ज्ञान जिसके पग चाँपे
तीन लोक अंगुरी पे धारें
बो बांकों तो रीझै केवल
करुण भाव-सरिता पे
जिसको रचकर
स्वयं कमलापति ने
बार-बार बलैयाँ ली
बलभद्र के उसी बालसखा ने
बल पे नहीं
प्रेम पे सगरी दुनिया नचा ली
सौंदर्य सौहे जब कृष्ण सरीखो
कालातीत हो
स्नेह रस भीजै
श्याम वरण
सलोने श्रीमुख पर
सुर-नर सगरे क्यूँ नाही रीझै
मोर-मुकुट माथे पे धार्यो
मधुसूदन की मोहक मुस्कान पे
मीरा..मयूर सों चंचल मन वार्यो
सौंदर्य-ज्ञान जिसके पग चाँपे
तीन लोक अंगुरी पे धारें
बो बांकों तो रीझै केवल
करुण भाव-सरिता पे
जिसको रचकर
स्वयं कमलापति ने
बार-बार बलैयाँ ली
बलभद्र के उसी बालसखा ने
बल पे नहीं
प्रेम पे सगरी दुनिया नचा ली
सौंदर्य सौहे जब कृष्ण सरीखो
कालातीत हो
स्नेह रस भीजै
श्याम वरण
सलोने श्रीमुख पर
सुर-नर सगरे क्यूँ नाही रीझै
✍️ सरला सोनी "मीरा कृष्णा" ( जोधपुर, राजस्थान )
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