बुधवार, नवंबर 03, 2021

☀️ दीपावली और मानवता ☀️

 

दीपावली की रंगीन शाम थी। सुजाता अपने घर के एक-एक कोने को पहले ही रंगीन झालरों से सजा चुकी थी और अब पूजा के बाद दीये जला रही थी। अचानक उसकी दृष्टि घर के पीछे रहने वाली रमा के छोटे से घर पर गई। उसके घर में अंधेरा था। रमा से उसका परिचय यूँ ही चलते फिरते हो गया था। उसने बताया था कि वह साड़ी में फॉल लगाती है यदि कभी आवश्यकता हो तो जरूर बताएं। सुजाता ने भी हाँ कह दिया था। फिर एक दिन रमा उसके घर आ गई थी - "भाभी जी साड़ी में फॉल लगाने के लिए नहीं है क्या ? दीजिये ना मैं लगाकर ला दूंगी"। सुजाता - "अरे रमा फॉल के साथ पिको भी करना होता है। तुम पिको कैसे करोगी मशीन रखी हो क्या"?
रमा - "नहीं भाभी जी पिको मशीन तो नहीं है परंतु मैंने एक जगह से बात की हुई है। उनके पास पिको वाली मशीन है। वहां जाकर मैं साड़ी में पिको कर लेती हूं। इसलिए मैं आपकी साड़ी में भी पिको कर दूंगी"।
सुजाता - "वो तुम्हें अपनी मशीन देते हैं पिको करने के लिए" ? 
रमा - "जी भाभी जी मैं कभी-कभी उनके यहां जाकर सिलाई भी करती हूं। उनके कपड़े सिलने में उनकी सहायता करती हूं, इसलिए मुझे अपनी मशीन चलाने देते हैं वह"
और उसने रमा को साड़ी दे दी थी। दूसरे दिन ही उसकी साड़ी में फॉल और पिको करके ले आई थी रमा। उसने देखा काम बहुत अच्छे किये थे उसने। सफाई थी उसके काम में। उसके बाद से फॉल पिको के लिए सुजाता उसे ही अपनी साड़ियां देने लगी। एक बार जिद करके रमा उसका ब्लाउज सिलने के लिये ले गई थी और सिल कर ला दिया था। सुजाता को ब्लाउज की फिटिंग बहुत अच्छी लगी। अब उसे पता चला रमा हुनरमंद है। उसका पति एक निजी संस्थान में काम करता था। उससे परिवार का गुजारा होना मुश्किल था, इसलिए रमा घर में यही छोटे-छोटे काम करके अपने परिवार की आवश्यक जरूरतों को पूरा करती थी। रमा के घर को अंधेरा देख कर सुजाता से रहा नहीं गया उसने कुछ दिए उठाए और रमा के घर जाने लगी।
 उसके पति ने उसे टोका - "तुम अभी दीये लेकर कहाँ जा रही हो" ?
 सुजाता - "वो पीछे वाले घर में अंधेरा है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। मैं जा रही हूं वहीं "दीप-दान" करने।
 उसके पति हंस पड़े - "तुम्हारी यह समाज सेवा भी ना। कितने घरों में जलाओगी दीये" ?
सुजाता - "मैं पूरी दुनिया में ना कर सकूं उजाला। परन्तु एक घर में तो दीये जला ही सकती हूं"। कहकर चली गई सुजाता । रमा के घर के पास जाकर रमा को आवाज दिया और दीये उसके घर के सामने रख दिया। आवाज सुनकर रमा बाहर आई।
  - "अरे भाभी जी आप"।
 सुजाता - "क्या बात है रमा तुम्हारा घर अंधेरा क्यों है। दिवाली का दिन है, और तुम्हारे घर में एक भी दीया नहीं जल रहा है"।
 रमा  - "क्या बताऊं भाभी जी इनकी नौकरी छूट गई है। कोरोना काल में  कंपनी बंद हो गया है । नया काम मिलता नहीं है। ऑटो रिक्शा चलाने लगे उसमें भी सवारी मिलना मुश्किल होता है। दिन भर में इतनी आमदनी नहीं हो पाती की ऑटो भाड़ा देकर परिवार को दो समय सही से भोजन मिल पाये। सिलाई सेंटर भी बंद है। वो लोग घर चले गये। सिलाई सेंटर से कुछ थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी तो किसी तरह घर का खर्चा चल जाता था। एक दर्जी से बात किया है। वहां जाकर मैं दिन भर बैठ नहीं पाती, इसलिए कुछ तुरपाई और बटन टाँकने का काम लाती हूँ। ऐसे में कैसे दीवाली मनाऊँ"।
सुजाता ने देखा उसके बच्चों का मुंह सूखा हुआ था। लग रहा था दिन भर उन्होंने खाना भी नहीं खाया। रमा को लेकर अपने घर आई और उसे बच्चों के लिए फल, मिठाइयां, खाना, और दिवाली के पकवान दिये।
 रमा - "यह मत दीजिए भाभी जी यह मैं नहीं ले सकती। हो सके तो आप मुझे अपने घर में काम पर रख लीजिए ताकि कुछ आमदनी हो जाए मैं आपके घर के सारे काम करुँगी"।
सुजाता  -  "हां मैं तुम्हें काम भी दूंगी पर अभी तो तुम यह लेकर जाओ। कल तुम आना, मैं तुम्हें काम भी दूंगी"।
रमा के जाने के बाद सुजाता से उसके पति ने कहा - "तुम उसे क्या काम दोगी कल। हमारे घर में तो ऐसे ही माली भी है, खाना बनाने के लिए भी बाई आती है, और घर की सफाई करने के लिए भी बाई है। क्या इनमे से किसी को हटा कर उसे काम दोगी, यह उचित होगा क्या ? और कौन से काम दोगी अगले दिन"।
 सुजाता - "कल बताऊँगी"।
अगले दिन रमा के आने के बाद वह उसे लेकर बाजार गई और एक सिलाई मशीन खरीद दिया और साथ में उसे अपने ब्लाउज भी दिए सिलने के लिए।
और कहा - " तुम घर बैठकर सिलाई करो। तुम सिर्फ तुरपाई और बटन लगाने के लिए लाती हो, अब सिलने के लिये भी लाना। देखना तुम्हारी दुकान बहुत जल्द जम जाएगी, तुम इतनी अच्छी सिलाई करती हो।
रमा के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। रमा ने काम शुरु किया। धीरे-धीरे उसकी स्थिति सुधरने लगी l
आज रमा सुजाता के घर आई मिठाई लेकर और कहा - "भाभी जी इसे लेने से इंकार मत करना। यह मैंने अपने हाथों से बनाया है आपके लिए। आप खाकर जरूर बताना कैसे बने। आपकी मानवता ने मुझे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। आज सम्मान से जी रही हूं और चार और लोगों को भी मैं रोजगार दे रही हूं l सिलाई सेंटर से बटन टाँकने के लिए और तुरपाई के लिए कपड़े लाती थी। आज मेरे पास से मेरे जैसी जरूरतमंद बहने काम ले जाती हैं । मैं अभी तक मशीन की कीमत आपको नहीं चुका पाइ क्योंकि मैंने दो और मशीन खरीदी है, और अपने जैसी ही दो बहनों से सिलाई करवाऊँगी। आप कल दिन के 11:00 बजे मेरे घर जरूर आइये भाभी जी। मैं सिलाई सेंटर खोल रही हूँ, और उसका नाम मैंने मानवता सिलाई सेंटर रखा है। मैं उसका उद्घाटन आपसे करवाना चाहती हूं। क्योंकि इसकी नींव आपके द्वारा ही पड़ी है। आपसे मैंने सीखा है भाभी जी कि "मानवता क्या है"। आपने मुझ गरीब को बिन माँगे पूरा भविष्य दे दिया। वह भविष्य मैं अपने साथ-साथ दूसरी बहनों को भी देना चाहती हूँ। आप से ही सीखा मैंने मानवता की सीख, इसलिए भाभी जी आपको जरूर आना है कल"।
 सुजाता - "मैं कल जरूर आऊंगी"।

                                     ✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )


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