बढ़ें चलो, बढ़ें चलो,
उजालों की ओर बढ़ें चलो,
अंधेरों को दे चुनौती,
रोशनी से गले मिलो।
उजालों की ओर बढ़ें चलो,
अंधेरों को दे चुनौती,
रोशनी से गले मिलो।
झोपड़ी हो या महल,
घने जंगल या उपवन,
नूर बिखेरती चांदनी में,
जगमगा दो जुगनू से चमन।
कुपोषण से ना हो मौत,
घर-घर जले अखंड ज्योत,
अन्नदाता आपदा प्रबंध,
कल्याणकारी योजना हो चंद।
हर देहरी पर हो नन्हा दीप,
सागर में हो असंख्य सीप,
स्वाती की हर बूंद बने मोती,
हर शख्स के कार्य में हो नीति।
अमावस में हो लक्ष्मी का वास,
जीवन में रिद्धि, सिद्धि की आस,
नए साल में नया भगीरथ प्रयास,
मंज़िल की लगन लक्ष्य का ध्यास।
परमात्मा में हो अटूट विश्वास,
असफलताओं से ना हो उदास,
पंखों में हो गज़ब का आसमान,
बढ़े जिससे देश का मान-सम्मान।
मेवा-मिठाई से भरे चाँदी के थाल,
अक्षत, रोली, कुंकुम से सजे भाल,
सजे वंदनवार, तुलसी, दीप माल,
जले फुलझड़ी, पटाखों की माल।
दीपोत्सव की लख-लख बधाइयां,
महावीर निर्वाण दिवस खूब मनाया,
गली गली गूंजे ढोल, नगाड़े, शहनाई,
जश्न मना ले मनवा दीपावली आई।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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