हमारे भारतवर्ष के बहुत से त्योहारों में नारी के श्रृंगार का बड़ा ही महत्व है, जैसे-वट वृक्ष की पूजा, सावन, दीपावली इत्यादि इन्हीं में से एक प्रमुख त्योहार करवा चौथ भी है। यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रात को मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए सुबह से निर्जला व्रत रखती है, विभिन्न प्रकार के पकवान बनाती हैं और बिल्कुल उसी तरह तैयार होती हैं, जैसे वे अपने विवाह में तैयार हुई थी और चंद्र दर्शन करके पूजा करती हैं। पूजा करने का अपना-अपना विधि-विधान है पर इसकी संपूर्णता नारी के श्रृंगार पर केंद्रित है, जिसके की कई कारण हैं। हमारे वेदों में भी नारी के श्रृंगार का जैसे मांग में सिंदूर, पैरों में महावर या अलता तथा माथे पर बिंदी आदि का एक विशेष स्थान है और हर श्रृंगार का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है, यहां तक कि महावर में एक पड़ी लाइन, एक खड़ी, दो सीधी, तिरछी तथा गोलाकार रचना की भी अपनी मान्यता है। जो गहने पहने जाते हैं, वह एक्यूप्रेशर का काम करते हैं जैसे - बिछिया, पायल, चूड़ियां, कंगन, मांग टीका, कान की बाली या झाले, नाक में नथ तथा गले का हार। कहते हैं - कि इन स्वर्ण आभूषणों का शारीरिक स्पर्श स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसके अतिरिक्त फूलों के गजरे या फूलों के जेवरों का भी शारीरिक और मानसिक रूप से एक स्वस्थ प्रभाव पड़ता है। अतः इस तरह से ये त्योहार नारी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं इनसे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। इसीलिए इन त्योहारों का भी हमारे जीवन में बहुत महत्व है।
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पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...
उत्तम 👌
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