स्नेह का सरोवर,
ज्ञान का भण्डार।
समझा गए हमें जीवन सार,
चल पद चिन्हों पर उनके,
लग जाएगी कश्ती पार,
दादा-दादी का वो अतुलनीय प्यार,
देता था जीवन संवार।
याद है हर पल जो बिताया उन संग,
भरे उन्होंने ही बचपन में इंद्रधनुषी रंग।
थी मैं दादा की दुनिया,
कहते थे मुझे प्यारी गुड़िया,
पैर कभी न नीचे रखने दिया,
बिठा अपने कंधों पर,
बचपन को मेरे यादगार किया।
ख़ुद रो देते थे जो हमें रोता देखकर,
गए हैं वही आज हमें रोता छोड़कर।
झलकती थी कभी आँखों में ममता हर पल,
फेर लिया मुँह उन्होंने डाल लिया आँखों पर आँचल।
काँटो के इस जहान में,
अब हमें मिलता नही चैन है।
देखा था ख़ुशियों को अब तक,
अश्रुओं से भरे अब नैन हैं।
चाहे मन वो फिर लौट आएं,
हम उनको अपना प्यार दिखाएं।
कह नही पाए जो तब,
बताएं उन्हें कि वही थे हमारे रब।
सच्चाई सदा के लिये गए हम जान,
अपनों से ही है जीवन की शान,
करेंगे हम सदा उनका मान,
बढ़ायेंगे कर्मों से अपने उनका सम्मान।
आज भी ग़र हम कभी हैं लड़खड़ाते,
खड़ा उन्हें अपने आसपास ही हैं पाते,
हर ख़ुशी के पल में हम ऊपर हैं देखते,
ज्ञात है हमें बादलों के पीछे से वो हैं निहारते।
✍️ इंदु नांदल ( बावेरिया, जर्मनी )
Very nice
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