आओ मिलकर दीप जलायें।
घर आँगन का कोना-कोना,
स्वच्छ हृदय से उसे सजाएँ।
दीवाली आई है फिर से,
आओ मिलकर दीप जलायें।
केवल अपना ही ना सोचें हम,
रौशन हो सबका घर आँगन,
ऐसी कोई जुगत लगाएँ।
आओ मिलकर दीप जलायें।
वैर भाव मिट जाए मन का,
सब भाई-भाई कहलायें।
मन के आँगन में फिर से हम,
खुशियों के कुछ फूल खिलाएं।
आओ मिलकर दीप जलायें।
जिसका बेटा दूर देश मे,
माँ घर मे है आँख बिछाये।
उसको भी हम गले लगाकर,
दुःख को उसके दूर भगायें।
आओ मिलकर दीप जलायें।
जिसकी आँखे गम से नम है,
बेबस दिल है खुशियाँ कम है।
हम उनको भी गले लगायें,
सहारा देकर उसे उठायें।
आओ मिलकर दीप जलायें।
✍️पल्लवी सिन्हा ( मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें