आता है जब भी पितृ पक्ष
तब पितृ बहुत याद आते हैं
पितृ को तर्पण करके
हम घर मे शांति पाते हैं
पुत्र-पौत्र से श्राद्ध पाकर
पितृ दुख दूर भगाते हैं
संतुष्ट होकर श्राद्ध से
पितृ मुक्त हो जाते हैं।
श्रद्धा से श्राद्ध करने पर
घर-दर शुचि हो जाते हैं
सत्कार-प्रेम के बदले हम
आशीष सुखों का पाते हैं
पितृ समस्त देव तुल्य
सदा स्नेह बरसाते हैं।
एक बार जो गए जगत से
बस यादों में रह जाते हैं
अपने बुजुर्गों की महिमा
समझ नही जो पाता है
सेवा के पुण्य-कर्म से
वंचित वह रह जाता है
जीते जी सम्मान नही बुजुर्गों का तो
श्राद्ध एक घोटाला है
मात-पिता के चरणों में ही
स्नेह-सुधा का प्याला है
शुद्ध कर्म और सच्चे मन से हम पितृ पक्ष में
बुजुर्गों के लिए मन का मंदिर सजाते हैं
विधि संयम से तर्पण करके
अपना फर्ज निभाते हैं।
तब पितृ बहुत याद आते हैं
पितृ को तर्पण करके
हम घर मे शांति पाते हैं
पुत्र-पौत्र से श्राद्ध पाकर
पितृ दुख दूर भगाते हैं
संतुष्ट होकर श्राद्ध से
पितृ मुक्त हो जाते हैं।
श्रद्धा से श्राद्ध करने पर
घर-दर शुचि हो जाते हैं
सत्कार-प्रेम के बदले हम
आशीष सुखों का पाते हैं
पितृ समस्त देव तुल्य
सदा स्नेह बरसाते हैं।
एक बार जो गए जगत से
बस यादों में रह जाते हैं
अपने बुजुर्गों की महिमा
समझ नही जो पाता है
सेवा के पुण्य-कर्म से
वंचित वह रह जाता है
जीते जी सम्मान नही बुजुर्गों का तो
श्राद्ध एक घोटाला है
मात-पिता के चरणों में ही
स्नेह-सुधा का प्याला है
शुद्ध कर्म और सच्चे मन से हम पितृ पक्ष में
बुजुर्गों के लिए मन का मंदिर सजाते हैं
विधि संयम से तर्पण करके
अपना फर्ज निभाते हैं।
✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )
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