माटी छानी बना के लुगदी, बनाई आकृति दीपकों की हजार।
आशा कि मेरे ये सारे ही सुन्दर दीपक, जगमगाएगें हर द्वार।
बिक जायेंगे जैसे ही ये सब, धन की होगी फिर बौछार।
ले आऊंगा मैं भी गुड़िया, तेरे लिए जाकर बाज़ार।
हर बार शक्कर ही मिलती है, खिलाऊंगा तुझे मिठाई भी इस बार।
कुछ खिलौने भी ला दूँगा, ना करूंगा अब कभी इंकार।
दीपावली है पावन पवित्र, माँ लक्ष्मी का त्योहार।
बिक जायेंगी बनाई मेरी मूरत, लक्ष्मी जी खुद आयेंगी मेरे द्वार।
उनके आते ही देखना, बदल जाएगा सभी का कटु व्यवहार।
विश्वास मुझे है मेरी विवशता जानकर, माँ खोलेंगी अपने भंडार।
उन्हें कहाँ सहन कि, तरसे मेरा कभी भी घर-परिवार।
कभी दीप तो कभी मूरत के रूप में, माँ बरसाती है अपना प्यार।
जब तुम ले लेते हो किसी कारीगर से, उसकी मेहनत देकर रुपए दो-चार।
वो भी खुश होकर फिर, मना पाता है अपना हर त्योहार।
इस दीपावली उठा लो तुम भी, किसी कुम्हार के त्योहार का ये भार।
माँ कि कृपा बरसेगी तुम पर, लक्ष्मी माँ खुद आएगी तुम्हारे भी द्वार।
जब भी देखेंगे तुम्हें तब, प्रकट करेंगे कारीगर तुम्हारे प्रति आभार।
मत सोचो बन जाओ बस, इनके त्योहारों का आधार।
✍️सीमा शुक्ला "चाँद" ( खंडवा, मध्य प्रदेश )
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