आज 'नैना' उसी जगह खड़ी है जहां वह अपने पिता रमाकांत जी के साथ बचपन में आया करती थी। समुद्र की लहरों के बीच बने पुल पर बैठ घंटों अपने पिता से वहां के नजारों को महसूस करती थी। नैना अपने पिता के साथ अकेली रहती थी, उसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी। नैना की आंखें बड़ी-बड़ी और सुंदर थी उसे देखकर ही सब ने उसका नाम नैना रखा था, पर एक दिन नैना के साथ हादसा हो गया और उसकी आंखों की रोशनी चली गई। पिता रमाकांत अत्यंत चिंतित थे उसका बहुत ख्याल रखते थे उसके इलाज के लिए कई जगह गए किंतु निराशा ही हाथ लगी। एक दिन अचानक रमाकांत जी घर की सीढ़ियों से गिर गए उन्हें गंभीर चोटें आई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया किंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। रमाकांत जी अपनी बिलखती नैना को छोड़कर चले गए पर अपनी अंतिम सांस लेने से पहले वह नैना को अपने नेत्र दान कर गए थे। उनके बाद नैना उनकी आंखों से दुनिया देख सके यह उनकी अंतिम इच्छा थी। अपनी पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए नैना डाॅक्टर साहब के कहने पर आंखों की सर्जरी कराने के लिए तैयार हो गई। आज आंखों की सर्जरी सफल हो जाने पर नैना सबसे पहले उन्हीं लहरों के बीच बने पुल पर बैठकर अपने पिता को याद करना चाहती हैं जिनको वह पिता रमाकांत से सुना करती थी महसूस किया करती थी। आज वह घने काले बादलों के बीच एक रोशनी देख रही है जो उसके पिता ने जाते हुए आशीर्वाद स्वरुप उसे दी है। उसके मन में लोगों को नेत्रदान का महत्व बताने का विचार भी चल रहा है।
✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )
👌👏👏
जवाब देंहटाएं