प्रिय बोलोगे तुम आकर्षण,
प्रेम पंथ मैं लिख दूंगी,
अवधि बहुत छोटी आकर्षण की,
प्रेम अनंत मैं कह दूंगी,
कैसे कह सकते हो तुम,
आकर्षित है मन मेरा,
तेरे चक्षु द्वय के अलावा,
न तन मुझको याद तेरा,
तुम मानो या ना मानो,
मैं सागर तुमको कह दूंगी।
अमिट लेख है शब्द तेरे,
जो हृदय पर गढ़े गए,
मैं डोर सदृश थी बस,
तुम मोती बन मढ़े हुए,
तुम परन्तु में उलझो पर
मुक्ताहर तुम्हें लिख दूंगी।
दिवस नहीं वर्ष हैं बीते,
दशक न जाने कितने चले गए,
तुम प्रथम दिवस की ज्योति में,
हृदय चोरी कर चले गए,
कैसे, क्यों ये द्वन्द तुम्हारे,
पर निरद्वन्द तुम्हें मैं कह दूंगी।
चालित अब जीवन मेरा,
प्रेम प्रकाट्य हुआ कारण,
मन वंदन, मन रंजन मेरे,
मन वारा तुम पर मेरे वारण,
स्वीकार न करो तुम फिर भी,
साकार तुम्हें प्रेम में कह दूंगी।
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