क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम
कभी चक्षु तो कभी नयन हो तुम
चेहरे पर हर एक के सजे हो
लोचन तो कभी ओक्ष कहलाते हो तुम
जो न होते तुम हम इंसानों के पास
तो भला कैसे होता यह एहसास
वसुंधरा हमारी है खुबसूरती की ख़ान
ना देख इसे मन हो जाता निराश
कोई मोल क्या लगाए तेरा
हो अनमोल तुम मानो कहा मेरा
क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम
हो प्रेम की प्रथम सोपान तुम
दिल तक पहुँचने की राह हो तुम
मन को पढ़ लेने की किताब हो तुम
खोल देते हो दिल का हर एक राज़
कभी नैन तो कभी अम्बक हो तुम
क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम।।
✍️ डॉ० लीना झा चौधरी ( जयपुर, राजस्थान )
बहुत खूब
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