बुधवार, अक्टूबर 13, 2021

👁️‍🗨️ आँखें : जीवन सत्य 👁️‍🗨️

अगर ना आँखें होतीं तो धरा की सुंदरता, रह जाती बेमोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

मात-पिता और गुरुओं से इसने मिलन हमारा कराया है,
कई-कई जन्मों का पुण्य जो आँखों नें हमें दिखाया है,
सब बातों से बड़ी बात जो कह दी बात खंगोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

सत्य-असत्य के बिम्ब हमें आँखों में दिख जाते हैं,
बातों में भ्रम डाले कोई, पर आँखों से पकड़े जातें हैं,
पहचान की हैं इसने सबकी, रख देतीं है हृदय टटोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

सब दृष्टिवान हों, ज्ञानवान, जगत् की अनुपम छटा दृष्टिगत हो,
सब हों आँखों से युक्त सदा ना कोई इससे आँखों से निर्वासित हो,
सब को दें सकें दृष्टि, उपाय करो, विज्ञान से या पलटना पड़े भूगोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

बस आस यही अरदास यही, सब देखें सब देख सकें,
जो इतनी सुन्दर धरा सुहानी, इसके रस से पेख सकें,
सब दृष्टि की महत्ता पहचाने, बदले इन अनदेखों का माहौल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

            ✍️ डॉ० सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )


1 टिप्पणी:

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...