आँखों से उसने ना जाने क्या कह दिया,
पल भर में उसने दीवाना बना दिया।
अदाओं की उसने घायल कर दिया,
इंसान से मुझे उसने पुतला बना दिया।
एक आवारा, एक पागल, एक बेकार था मैं,
उसने मुझे अदद शायर बना दिया।
औरों की आँखों मे खटकता था मैं,
झलक दिखा कर परवाना बना दिया।
गमों के साए में हरदम रोता था मैं,
उसकी मुस्कुराहट ने मुझे हंसना सीखा दिया।
एक बेजान सूखा पेड़ था मैं,
पल भर में उसने मुझे आबाद कर दिया।
✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )
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