गुरुवार, अक्टूबर 14, 2021

💢 सत्य विजित सदा 💢

 

जब-जब धरा पर अधर्म का हुआ अधिकार है,
तब-तब धर्म ने रच दिया स्वयं ही प्रतिकार है,
हैं कई साक्ष्य इस धरा पर, और हैं कई प्रमाण भी,
जब-जब कराही थी धरा तब हुआ परित्राण भी,
हैं कथाएँ अनगिनत जिनकी बनी यही सीख है,
दया और मनुजता ही समर्थ ये नहीं कोई भीख है,
एक कथा जब रावण का बढ़ गया अति अभिमान था,
बुद्धिमत्ता थी बहुत पर दर्प हुआ तो हुआ ज्ञान से अनजान था,
जब बुराई साथ हो तब हमें बुरी ना वो दिखती ज़रा,
न समझ पाए वो मनुज जिसके कर्म से जर्ज़र हो उठी हो धरा,
दर्प रावण का ज्ञान पर भारी ज्यों कुचाल के हों थपेड़े,
वेद-पुराण ज्ञान भी दब गया अभिमान सब पर भारी पड़े,
 दर्द था अनंत उसका और क्रूरता अति हो उठी,
 जान जो असीम इतिश्री उसकी क्रोध में हो उठी,
 क्रोध के वशीभूत वह कर बैठा अनीति कर्म,
 पत्नी की वाणी भी ना समझी, बिगाड़ दिया कुलधर्म,
 बन विधर्मी वह देवताओं का करता रहा अपमान तब,
 माता सीता को बंदी बना ले आया निज धाम तब,
 जानता था गति इस कर्म कि नहीं विधिसंगत कभी,
 पर बुद्धि और विवेक पर पड़ गई अविवेकी रंगत तभी,
 भाई ने भी धर्म का अमूल्य ज्ञान उसको दिया,
 हठधर्मी समझा न उसने अपना दर्प कर लिया,
 हठधर्मिता बढ़ाकर कर गया अपने कुल का नाश वह,
 एक ही त्रुटि थी उसकी, वंश का कर गया सर्वनाश वह,
 धर्म के साथ थे राम तभी उस रावणी शक्ति से लड़ सके,
 जो देवों से था प्रकाशित सदा वह तथ्य प्रकट कर सके,
 हो कितनी भी प्रभावी पर बुराई नहीं कभी जीतती,
 कितना गहरा भी हो तमस पर अच्छाई प्रकाश नहीं छोड़ती,
 हो कोई भी देशकाल या कोई भी युग रहे,
 अच्छाई सदा बुराई पर है भारी चारों युग कहते रहे,
 माना कि वह कष्ट पाता जिसने चुना अच्छाई का कटीला रास्ता,
 पर सदा विजित वही हो कितना भी विकट पथरीला रास्ता,
 युग-युगांतर सदा यही तथ्य प्रमाणित करता जाएगा,
 असत्य सदा पराजित होगा सत्य विजित होता आएगा।।


                                  ✍️ डॉ० सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )

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