यह कौन शिल्पकार है,
मातृभूमि के विराट स्वरूप का ?
यह कौन फनकार है,
माँ भारती के स्वर्णिम आलेख का ?
यह कौन बागबान है,
वतन के गुलिस्तां में खिलखिलाती पौध का ?
यह कौन रहनुमा है,
देश के नौनिहालों की लहलहाती फसल का ?
यह कौन जौहरी है,
जो तराशता हैं बेशकिमती हीरे-जवाहरात को ?
यह कौन रचनाकार है,
जो बलशाली बना रहा देश की नींव को ?
यह कौन संगीतकार है,
जो सुर दे रहा दबी-कुचली आवाज को ?
यह कौन जादुगर है,
जो ऊर्जा दे रहा अंतरिक्ष में टोह लेने उपग्रह को ?
कहीं यह वहीं तो नही,
जिसकी जिंदगी गुज़र जाती हैं,
अपने बच्चों की परवरिश के लिए,
साहूकारों की देहरी पर माथा रगड़ते-रगड़ते ?
कहीं यह वहीं तो नही,
जिसके जूते घिस जाते हैं,
खुद का घरौदा बनाने के लिए,
बैंकों के चक्कर लगाते-लगाते ?
कहीं यह वहीं तो नहीं,
जिसकी कमर टूट जाती है,
बीमार पत्नी का इलाज कराने में,
सरकारी अस्पतालों की कतारों में खड़े-खड़े ?
कहीं यह वहीं तो नही,
जिसके सपने बिखर जाते है,
शाखों से टूटे पत्तों से तितर-बितर,
अपनी ही कमाई हासिल करने में ?
जी ! यहीं तो हैं ...
देश का शिल्पकार,
भविष्य निर्माता शिक्षक।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय" का मंत्रोच्चार करता,
दुनिया को आलोकित करता।
खुद 'दीए तले अंधेरा' बन,
'नई सुबह' का इंतजार करता,
मन में अटूट विश्वास लिए।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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