सोमवार, सितंबर 13, 2021

🍁 हिंदी जितनी वैज्ञानिक उतनी लचीली 🍁

14 सितंबर को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। यूँ तो करीब-करीब यह पूरे भारत में बोली और समझी जाती है पर अब तक इसे जितना विस्तृत होना चाहिए था, नहीं हो पाई है। किसी भी दिवस को मनाने की आवश्यकता तब होती है जब हमें उसके प्रति लोगों को जागरूक करना पड़ता है। अंग्रेजों ने जो अंग्रेजी की छाप छोड़ी उससे देश अभी तक उबर नहीं पाया है। स्वतंत्रता के बाद 1949 में 14 सितंबर के दिन हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। राजभाषा अर्थात सरकारी कामकाज का जो माध्यम है वह हिंदी हो और इसके लिए हर क्षेत्र में हिंदी का प्रभाव हो। देश में प्रादेशिक भाषाएं तो बहुत है परंतु एक भाषा ऐसी होनी चाहिए जो पूरे देश को बांधने का काम करें।
                              भाषा कोई भी बुरी नहीं होती पर अंग्रेजी की चमक दमक में हम इतने खो गए कि आज अपनी भाषा हिंदी के प्रति ही उदासीन हो गए, जो किसी से छुपा नहीं है और हमें जागरूक करने की जरूरत आ पड़ी।इसके लिए हमें एक दिन निश्चित कर हिंदी दिवस के रूप में मनाने की आवश्यकता हुई। आज पर्यावरण दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस आदि मनाए जाते हैं क्यों ?
           क्योंकि हम उनकी गरिमा, अपने कर्तव्य और अपने दायित्व को भूलते जा रहे हैं। शायद इसीलिए हिंदी के उत्थान और उसकी गरिमा को बनाए रखने के लिए आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं।
                                     हिंदी के नामकरण की बात करें तो 14वीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने एक किताब लिखी थी जिसका नाम था खालिक बारी। वह एक तरह का शब्दकोश था जिसमें अरबी और फारसी के शब्दों और वाक्यों के हिंदी में पर्याय दिए गए थे। पूरी पुस्तक में उन्होंने 35 बार हिंदवी तथा 5 बार हिंदी शब्द का प्रयोग किया था। हिंद देश की भाषा हिंदी लोगों को भा गई। इस तरह हिंदी का नामकरण हो गया और यह नाम लोगों की जुबान पर चढ़ गया।
अमीर खुसरो ने ही सबसे पहले हिंदी में अपनी रचनाएं दी। उनके लिखे गीत आज भी फिल्मों में गाए जाते हैं। जैसे:- 'काहे को ब्याही विदेश रे लखिया बाबुल मोरे' फिल्म उमराव जान का गीत है। धीरे-धीरे हिंदी का स्वरूप भी बदलता गया। उसकी सुंदरता दिन-प्रतिदिन निखरती गई।
                                                     हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है अर्थात जो बोलते हैं वही लिखते हैं और जो लिखते हैं वही पढ़ते हैं। जैसे यदि कृपा लिखा तो कृपा ही पढ़ेंगे परंतु अंग्रेजी में knife लिखते हैं और नाइफ पढ़ते हैं English में E का प्रयोग कभी इ, कभी ई, और कभी ए के लिए भी होता है। किंतु हिंदी में ऐसा नहीं होता इसलिए इसे वैज्ञानिक भाषा कहते हैं। 
                हिंदी वैज्ञानिक भाषा होने के साथ ही बहुत ही लचीली भाषा भी है। इसने बड़ी आसानी से विदेशी शब्दों को अपने में मिला लिया और अपनी गरिमा को भी बनाए रखा है। इसलिए तो हिंदी में शब्दों को चार भागों में बांटा है तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी। तत्सम शब्द वह हैं : जो संस्कृत से हूबहू हिंदी में आए हैं। जैसे सूर्य ग्रहण, गृह, जल, ग्राम, दुग्ध इत्यादि। 
संस्कृत के शब्दों का बिगड़ा हुआ रूप जब हिंदी में आया तो उसे तद्भव कहते हैं जैसे ग्राम से गांव, दुग्ध से दूध, दधि से दही इत्यादि।
देशज शब्द वे कहलाए जिनका जन्म हमारे देश में हुआ। जैसे डिबिया, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा इत्यादि।
विदेशज या विदेशी शब्द वे हैं जिन्हें विदेशी भाषाओं से लेकर हिंदी ने खुद में मिला लिया। इसमें अरबी, फारसी और अंग्रेजी आदि के शब्द हैं। कुछ ऐसे शब्द जिनका हिंदी परिवर्तन मुश्किल था उन्हें अंग्रेजी में ही शामिल कर लिया। जैसे button English का शब्द है। हिंदी में होगा अस्त-व्यस्त वस्त्र नियंत्रक। तो हिंदी ने बटन बना लिया। रेलगाड़ी का एक शब्द है रेल (Rail )-english का, दूसरा शब्द गाड़ी हिंदी का। दोनों को मिलाकर हिंदी ने रेलगाड़ी बना लिया। Ticket english का शब्द है, जिसका अर्थ है गंतव्य तक का जो किराया चुकाया उसका प्रमाण। तो हिंदी ने ticket को टिकट बना कर हिंदी में शामिल कर लिया। इसके अलावे जूता, फीता, बाल्टी, पजामा, चाभी इत्यादि शब्द भी अरबी, फारसी से लिए गए हैं।
                             हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस भाषा में भाव की अभिव्यक्ति जितनी अच्छी तरह हो सकती है शायद अन्य किसी भाषा में नही हो सकती। इसके एक-एक शब्द की जो गहराई है उसे आंका नही जा सकता। हिंदी में प्रेम को भी अलग-अलग शब्दों में बांटा गया है। माँ का प्यार ममता तो पिता का प्यार वात्सल्य, भाई का प्यार स्नेह तो पति-पत्नी का प्यार प्रेम है। हिंदी जितनी खूबसूरत और लचीली है उतनी ही रसीली भाषा भी है। यह हमारी मातृभाषा है। यह भारत माँ के माथे की बिंदी है। हमारी पहचान है। भारत की शान है। इसलिए हमारा यह कर्तव्य बनता है कि अपनी मातृभाषा का हम अधिक से अधिक प्रयोग करें तथा हिंदी के उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहें।
                                              ✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )

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