यूँ ही कई बार बैठे-बैठे,
बचपन के दिन याद आते हैं।
मेरे प्राथमिक विद्यालय के नए चेहरे,
एक-दूसरे को गौर से देखते रहते।
फिर धीरे-धीरे एक दूसरे से,
परिचित हो जाते।
अपने सबसे अच्छे दोस्त का हाथ पकड़,
कक्षा की ओर ले जाते।
बेंच पर बैठकर एक दूसरे के,
टिफिन का खाना शेयर करते।
खेल के मैदान में,
खुली हवा में दौड़ कर खेलते।
बगीचे में तितलियों का पीछा करते,
उँगलियों से खेलने वाले काग़ज़ के खिलौने बनाते।
गुड़िया और मुलायम खिलौनों का संग्रह करते,
लड़ाई-झगड़े करके फिर से एक हो जाते।
बरसात के मौसम में पोखरों में नाचते,
अब जब मैं अपने बीते दिनों को देखती हूँ,
और सोचती हूँ।
तो याद आते है मुझे,
वो लापरवाह मस्ती भरे दिन बचपन के।
✍️अनुपमा कडवाड़ ( मुंबई, महाराष्ट्र )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें