मंगलवार, सितंबर 28, 2021

❇️ चलो बचपन जीकर आते हैैं ❇️

यह बचपन भी ना हर बार याद आता है,
जब देखती हूँ अपने आस-पास खेलते बच्चों को,
उनकी अठखेलियों को, उनकी शरारतों को,
मेरे मन का बच्चा पुलक सा उठता है, 
आज भी जब बचपन के घर जाती हूँ,
तो पिता के लाड से, माँ के दुलार से,
मेरा बचपन चहक सा उठता है,
उतर जाता है वह आवरण,
जो चेहरे को उम्र के लबादे से ढकता है,
 वह भाई बहनों के साथ मिलकर,
 खिल-खिलाता है आज भी मेरा बचपन, 
 जो मुझे जिंदा बनाए रखता है,
 यह दुनिया का दस्तूर भी कुछ अजीब सा है,
 उम्र के दौर में लोग बचपन भुला देते हैं, 
 अपने अंतर्मन के बच्चे को भूल सा जाते हैं,
 लौटता नहीं दोबारा वह वक्त,
 जिसे कभी खेलते हुए हम छोड़ आए थे, 
 आज भी उन गलियों में आहिस्ता से घूम कर आती हूँ,
 जो सखियां बिछड़ गई थी वक्त के दौर में, 
 फेसबुक में उन्हें आज फिर से पाती हूँ,
 दूर से ही सही, फिर से उनके साथ बचपन जी कर आती हूँ,
 चलो एक बार फिर से बचपन से मिल कर आती हूँ।

                                    ✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र ) 


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