मेरे बड़ों ने मुझे बड़ा न होने दिया।
छोटों ने ख्वाबों को खोने ना दिया।
स्नेह के प्रगाढ़ बंधन दोनों, लिहाजा।
उम्र ने बचपन को जुदा होने ना दिया।
चिड़िया, बुलबुल, तितली और फूल,
छोटे से काम और छोटी-छोटी भूल,
बचपन की सहेलियां, पेड़ पर झूले,
ग़म की दुनिया में दिल डुबोने ना दिया।
उम्र ने बचपन को जुदा होने ना दिया।
माँ का हाथों से खाना खिलाना।
पापा की ऊंगली में सारा जमाना।
दीदी के साथ नाटक, नृत्य, गाना।
उन पलों ने कभी मायूस होने ना दिया।
उम्र ने बचपन को जुदा होने ना दिया।
उस दिन हम थोड़ा बड़े हुए।
जब पापा छोड़ कर चले गए।
मां के आंसू, पापा की यादों ने,
कितनी रातों ने हमें सोने ना दिया।
उम्र ने बचपन को जुदा होने ना दिया।
आज भी माँ रोज फोन करती हैं।
बचपन की यादें साझा करती हैं।
कहें गुरु श्री स्वामी सनातन श्रुति।
हालातों ने हंसने, हौसलों ने रोने ना दिया।
उम्र ने बचपन को जुदा होने ना दिया।
✍️ प्रतिभा तिवारी ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें