गुरु और शिष्य का सम्बन्ध बहुत प्रभावी और मजबूत होता है। दोनों एक दूसरे के लिए पूरी तरह से समर्पित रहते हैं। हमेशा दोनों एक दूसरे की भाषा समझते हैं। गुरु का शिष्य पर अटूट विश्वास होता है।
गुरु अपने जीवन काल में यही चाहता है कि शिष्य की बुनियाद मजबूत हो। वह अपनी एक अच्छी पहचान बनाए रखे। एक अच्छे व्यक्तित्व का इंसान बने। जीवन की हर कठिनाईयों में डट कर मुकाबला करे। हमेशा आत्मनिर्भर रहे। जीवन गुरु के निर्देशों से ही गतिमान है। शिष्य का आचरण गुरु की ही देन होता है।
दोनों के रिश्ते एक दूसरे के पूरक होते हैं। शिष्य अपने जीवन में गुरु के साथ जीवनपर्यन्त सम्बन्ध से विभूषित रहता है। गुरु का अपने शिष्य के प्रति समर्पित होना, पूरी निष्ठा से उसको साकार रूप देना, दूर रहते हुए भी उसकी परवाह करना। गुरु का शिष्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण है।
और ये आज से नही, ये सम्बन्ध प्राचीन काल से ही गतिमान रहा है। शिष्य अपने गुरु की सेवा करते, उनका जीवन शिष्य की पूँजी होती थी।
✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )
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