रविवार, सितंबर 05, 2021

🌼 गुरु 🌼

दीपक बन जलता है गुरु,
ज्ञान का प्रकाश फैलाता है गुरू,
न पैसे की चाहत, ना शोहरत की चिंता,
कुम्हार सा मिट्टी के घडे़ को तराशता है गुरू,
शिष्य के उपलब्धियों से खुश होता है गुरु,
बस आदर भाव चाहता है गुरु,
वक्त के साथ वक्त बन चलता है गुरु,
 गुणों की तलाश करता है गुरु,
 तराशता है शिल्पकार सा,
 शिद्दत से अबोध बालमन,
 नहीं है आस उसे वाहवाही की,
 बस रोकता है वो हर तबाही,
 इंसान बना इंसानियत,
 सिखलाता है गुरू,
 इस कोरोना महाकाल में
 दूरस्थ शिक्षा का अभियान,
 बन ज्ञान का प्रवाह करता, 
 रहा है गुरु।।
              
      ✍️ सुनीता सिंह सरोवर ( देवरिया, उत्तर प्रदेश )

2 टिप्‍पणियां:

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