जन-जन की भाषा कहलाती जो,
वह हिंदी है।
वसुधैव कुटुंबकम् को अपनाती जो,
वह हिंदी है।
सबको अपना दोस्त समझती जो,
वह हिंदी है।
सबको बाँधती एक डोर में जो,
वह हिंदी है।
हर भाषा को अपना समझती जो,
वह हिंदी है।
सबका विकास समझती जो,
वह हिंदी है।
सब रंगों को अपनाती जो,
वह हिंदी है।
हर भाषा को जो खुद में समाती जो,
वह हिंदी है।
नए अर्थ के रूप बनाती जो,
वह हिंदी है।
चारों दिशाएं राह दिखाती जो,
वह हिंदी है।
भेदभाव को दूर भगाती जो,
वह हिंदी है।
अपनेपन का अहसास कराती जो,
वह हिंदी है।
✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )
लाजवाब
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