मंगलवार, सितंबर 28, 2021

❇️ चलो बचपन तलाशें ❇️

 

चलो बचपन तलाशें,
आओ फिर वही दिन खोज लायें,
वही गलियां, वही सखियाँ।
वही बेफिक्री के आलम, 
वही मस्ती भरे हर पल।
चलो इक बार फिर से,
वो खोया बचपन तलाशें।
वो माँ की डाँट मीठी सी,
फिर प्यार ममतामयी प्यारी।
माँ की गोद में सोना,
सुनते-सुनते कोई कहानी।
बेबात की बातें,
बस बातें ही बातें।
तौलने का डर नही,
कुछ इस तरह की बातें।
चलो फिर से तलाशें,
फुरसत भरे हर दिन।
ना डर कोई जमाने का,
ना उम्मीद कोई थी।
किस्से कहानी के पात्र ही,
सब संगी साथी थे।
ना घर की कोई चिंता,
ना कोई परेशानी।
चलो इक बार फिर से,
वो खोया बचपन तलाशें।
वो खेल सारे के सारे,
वो भागता और दौड़ता बचपन।
कोई हो खोज ऐसा,
जो मेरा बचपन दिला दे।
कोई हो ज्ञान ऐसा,
जो मेरा बचपन दिला दे।
चलो इक बार फिर से,
वो खोया बचपन तलाशें।

   ✍️ डॉ.सरला सिंह "स्निग्धा" ( मयूर विहार, दिल्ली )


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