सोमवार, सितंबर 27, 2021

❇️ बचपन ❇️

 

है याद बचपन की हर घड़ी,
थे हम छोटे पर ख़ुशियाँ बड़ी,
साँसें थी दोस्तों से जुड़ी,
मज़बूत थी हर एक कड़ी।

सीधी-सादी थी डगर,
करता न था कोई अगर-मगर,
न कुछ खोने का डर,
न थी जीवन की फ़िक्र।

ज़मीन-आसमान थे हमारे,
सबको हम प्राणों से प्यारे,
मासूमियत से भरे,
छल-कपट से कोसों परे।

हुए बड़े तो कितना कुछ छूट गया,
बेफ़िक्री का ज़माना रूठ गया,
हर कोई बड़ा बनने में जुट गया,
जिसमें सुख चैन लुट गया।

दिल के कोने में बसी हैं बालपन की मस्तियाँ,
काग़ज़ की कश्तियाँ,
जेबें ख़ाली ख़ुशी से भरी झोलियाँ,
जीवन से भरी हुई ठिठोलियाँ।

बचपन गया ढल,
नदी सा बह गया कल-कल,
तमन्ना है लौट आए वो पल दो पल,
रुकी- रुकी सी ज़िंदगी फिर पड़े चल।

              ✍️ इंदु नांदल ( बावेरिया, जर्मनी )

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